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Thursday, 5 December 2013

मैं कुंवारी पापा की प्यारी, चुद गयी यारों




कल हमने होली और फाग दोनों मनाये.. यहाँ US में weekend में ही tyohar मानाने का रिवाज है... एक लोकल क्लब में सब इकट्ठे थे - तकरीबन ३५ से ४० भारतीय परिवार.. होली जलाई गयी.. सब खूब नाचे - दारु पी - भांग और ठंडाई खुल कर बही - सबने जम कर पी - खूब रंग खेला - सब लाल भुत बने हुए थे - पापा ने क्लब के मैनेजर से ऊपर के एक कमरे की चाबी चुप चाप ले रखी थी... मम्मी अपनी सहेलियों के साथ मगन थी - भैया अपने दोस्तों के साथ -

पापा ने इशारा किया और मैं नजर बचाकर उनके साथ होली - ऊपर कमरे में पहुँचते ही पापा ने मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और बेदर्दी से मेरे होठ चूसने लगे - मैं उनका पूरा साथ दे रही थी - पापा ने जब छोड़ा तब तक मैं गरम हो चुकी थी - पापा ने फटाफट अपने कपडे उतारे और मेरे सामने थे उनका मोटा लम्बा लंड - पापा का पूरा बदन रंग में रंग था सिवाय लंड के - उनका गोरा चिट्टा लंड मचल मचल कर उछल उछल कर मुझे इशारे कर रहा था - अपने पास बुला रहा था - रोक नहीं पाई खुद को और दौड़ कर मुह में ले लिया - बेतहाशा चूसने लगी - पापा मेरे बालों को कस कर पकडे हुए थे और बीच बीच में इतनी जोरों से खींचते की लंड मुह से बहार आ जाता और पापा उसी तरह बाल पकडे हुए ही मेरे मुह लौंडा घुसा कर चोदने लगते - अचानक उन्होंने पूरा का पूरा लंड मुह में ठांस दिया - समझ गयी की अब उनका गिरने वाला है - और फिर जैसे मेरे मुह में बाढ़ आ गयी हो - पापा की मलाईदार ठंडाई का कोई मुकाबला नहीं था - जो नशा लंड के इस गाढे गाढे माल में था वो दुनिया के किसी भी नशे में नहीं हो सकता....




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पापा ने मुझे खड़ा किया और अपने हाथों से नंगा कर पलंग पर धकेल दिया और मेरी चूत को मुह लगा चूसने लगे - थोड़ी ही देर में मैं पागलों की तरह मचलने लगी और पापा को गन्दी गन्दी गलियां देते हुए चोदने के लिए कहने लगी - अब नहीं बर्दास्त हो रहा था - मैंने पापा को अपने ऊपर खिंच लिया और उन्हें बिस्तर पर पलट उनके लंड पर चढ़ बैठी... कुछ देर मर्दों की तरह पापा को चोदती रही की अचानक पापा ने मुझे पटक कर मेरे ऊपर आ गए और मुझे चोदने लगे - हर धक्का चूत की गहराइयों तक लंड को पहुंचा रहा था - भांग के नशे ने उनके ठहरने की ताकत को और भी बढ़ा दिया था साथ ही एक बार मुह में झड चुके थे - इसलिए बिना रुके चोदे ही जा रहे थे - पता नहीं कितनी देर तक चोदते रहे और जब झडे तो लगा पूरी चूत उनके रस से भर गयी है... थोड़ी देर बाद उठे और कपडे पहन कर बोले कि मैं जा रहा हूँ तुम थोड़ी देर बाद नीचे आ जाना... मगर मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया...
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मैं चुदाई और भांग के नशे में मदहोश पड़ी थी - नंग धडंग - न जाने कितनी देर यूँहीं पड़ी थी कि पापा के हाथ फिर से अपने बदन पर सरकते महसूस हुए - मेरी चुचियों पर उनकी पकड़ सख्त हो गयी और मेरे होठो को अपने होठो में समेट लिया - मैं मन ही मन बोली - थैंक यु पापा - मेरा कितना ख़याल रखते हैं - और मैं अध्-बेहोशी की हालत में उनका साथ देने लगी - लौंडा चूत में और आग जगा रहा था - लगता है पहली चुदाई के बाद पापा का नशा कुछ उतरा है - एक एक धक्का नाप तोल कर लगा रहे थे - चूत की दीवारों का रगड़ते हुए लौंडा जब अन्दर जाता था तो लगता था चैन आ रहा है और फिर जब खींच कर निकालते थे तो चूत पागलों की तरह लंड से चिपटने की कोशिस करती थी - एक बार फी मेरी चूत मालामाल होने जा रही थी - और जब खुलता हुआ माल चूत में गिरा तो लगा बेहोश ही हो जाउंगी - निढाल सी पलंग पर फैली पड़ी थी की पापा के नंगे बदन का सारा बोझ मेरी चुचियों पर आ पड़ा - मेरे रस और अपने वीर्य में सना लंड मेरी छाती पर बैठ मेरे मुझ में घुसेड दिया - बिना सोचे समझे आँखे बंद किये बेतहाशा लंड चूसने लगी - लौंडा फिर तन्ना गया - पापा मुझ पर से उठे और मुझे उठा कर पेट के बल पलंग के किनारे पर लिटा दिया - मेरी टाँगे जमीन को छू रही थी और चुतड पलंग के किनारे पर थे - पेट के नीचे हाथ दे कर उन्होंने मेरे चुतड हवा में उठा दिए और एक सधा हुआ निशाना और लौंडा आधा मेरी गांड में था - दर्द के मारे मेरी चीख निकल गयी - पापा ने मेरे मुह अपने हाथों से दबोच लिया और चीख वहीँ की वहीँ घुट कर रह गयी - दुसरे हाथ से मेरी चूची थामी और और अगले ही धक्के में पूरा का पूरा लौंडा मेरी गांड में था - मैं दर्द से बिलबिला रही थी मगर पापा मेरे दर्द से बेखबर मेरी गांड में लंड पेले ही जा रहे थे - मैं भी अब मजा लेने लगी थी - चुतड पीछे धकेल कर धक्के पर धक्के झेल रही थी - गांड के संकरे छेद में लंड ज्यादा देर टिक नहीं पाया और माल उगल दिया... मैं थकी हरी पलंग पर गिर पड़ी - पता ही नहीं चला पापा कब उठे और कब गए....

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  #114   Gift FQ Bandwidth  
सोनी की ही चूत
सोनी की चूत में jhadunga मैं
चूत से बहार नहीं आउंगा मैं
कुत्तिया की तेरह चोदुंगा मैं
चिलाती रह पर नहीं रोकूंगा मैं
मुहं में भो डालूँगा लंड
चूत में भी लहराउंगा झंड
गालियाँ की बौछार में
गांड में भी डालूँगा लंड

   





कमरे में हम तीन थे और दिलीप के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थी - मैंने कमरे कि चिटकनी बंद कर दी और पापा से बोली - पापा, इसने मेरी इज्जत लूट ली उसकी इसको सजा मिलनी ही चाहिए | पापा पूछने लगे क्या चाहती हो तुम - मैंने कहा ये बिना सजा भुगते भाग न जाए इसके लिए इसके कपडे उतर कर इसको नंगा कर दीजिये | दिलीप काफी हील-हुज्जत कर रहा था पर हम दोनों ने मिल कर उसे नंगा कर ही दिया | मेरे कहने पर उसे पलंग पर लिटा कर मेरी चुन्नी से उसके दोनों हाथ बांध दिए और पापा कि टी से उसके दोनों पांव. अब दिलीप मादरजाद नंगा पलंग पर बंधा पड़ा था और माफी मांग रहा था - मैंने कहा गलती करने से पहले सोचना था अब भुगतने को तैयार हो जाओ - इतना कह कर मैं भी अपने कपडे उतर कर नंगी हो गयी - पापा कुछ सोच पायें इससे पहले दिलीप का लौंडा मेरे मुह में था | थोड़ी सी चुसाई के बाद ही तन्नाने लगा - मैं पापा से बोली पापा प्लीज़ पीछे से घुसा दीजिये अपना लौंडा - मेरे तो मजे थे - एक चूत में था और एक मुह में - दिलीप ने थोड़ी ही देर में मेरे लिए dessert कि व्यवस्था कर दी और मुह मलाईदार रबड़ी से भर दिया - पापा भी और न रुक पाए और मेरी चूत भर दी |
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मेरे उरोजों पे रेंगते तेरे होंठ, मुझे मदहोश किये जाते हैं
कुछ करो ना हम तेरे आगोश में बिन पिए बहक जाते हैं 
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  #118   Gift FQ Bandwidth 





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दो घंटे तक मैं थी - चुदास कुतिया और मेरे चूत पर जुटे थे दो कुत्ते - पापा और दिलीप | मेरे तीनो छेदों में दे पिचकारी दे पिचकारी होली खेली गयी | अब और ताकत नहीं थी चुदने कि और हम तीनो ही निढाल पलंग पर पड़े थे कि इतने में कोई जोरों से कमरे का दरवाजा खटखटाने लगा | हम तीनो ही उठे - मैं और पापा अपने कपडे उठा कर भाग कर बाथरूम में छुप गए और दिलीप ने झटपट चादर लपेटी और दरवाजा खोला - बाथरूम के दरवाजे कि फांक से हमें सब दिखाई दे रहा था - दरवाजे पर मम्मी कड़ी थी - नशे में लडखडाती मदहोश सी - कमरे में अन्दर आकर पलंग पर बैठते हुए दिलीप से बोली - तुने सोनी और उसके पापा को देखा क्या - सारी जगह ढूंढ चुकी - कहीं घर ना चले गए हों और इस तरह बडबडाते हुए वहीँ पलंग पर पसर गयी - पलंग पर रखे दिलीप के कपडे उनके नीचे दब गए - दिलीप उन्हें निकालने के लिए मम्मी के कंधे पकड़ कर उठाने लगा ही था कि एक जोरदार झापड़ उसके मुह पर पड़ा | मम्मी गुस्से में आग बबूला हो उसपर टूट पड़ी - हरामखोर साला कुतिया का जना मुझे हाथ लगाता है ठहर अभी सब को बुलाती हूँ और इसी हाथापाई में दिलीप कि चद्दर खुल गयी और वो मादरजाद नंगा था - दिलीप ने दौड़ कर कमरे का दरवाजा बंद किया और उनके माफी मांगने लगा - मम्मी एकटक उसके लंड को देखे जा रही थी - ढीला ढाला दिलीप का लंड भी काफी आलिशान था - मम्मी ने हाथ बढ़ा कर उसका लंड थाम लिया - बिना सोच हिप्नोटाइज नीचे बैठ गयी और लंड हाथो से हिलाने लगी - लंड तन्नाने लगा था और कब मम्मी ने पूरा का पूरा मुह में समेट लिया न हमें समझ आया और न ही दिलीप को |
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मेरे उरोजों पे रेंगते तेरे होंठ, मुझे मदहोश किये जाते हैं
कुछ करो ना हम तेरे आगोश में बिन पिए बहक जाते हैं 


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पापा बाथरूम से सब देख रहे थे और आग बबूला हो रहे थे मगर कुछ नहीं कर सकते थे | सबसे खस्ता हालत तो दिलीप की थी जिसे पता था पापा बाथरूम में हैं और उनके सामने ही उनकी बीबी उसका लंड चूस रही है | करे तो क्या करे | उगले तो अँधा निगले तो कोढ़ी | हमारी आँखों के सामने मामी ने दिलीप से अपनी चूत भी मरवाई और मम्मी की मस्त गांड देख कर अगर दिलीप बिना गांड मारे उन्हें छोड़ देता तो मैं दिलीप को हिजड़ा समझ लेती - मगर दिलीप पक्का मर्द था औरे मामी की हर एंगल से चुदाई की - जम कर चुदाई की | बाद में मम्मी को उसने समझा बूझा कर भेज दिया की वो थोड़ी देर बाद आएगा ताकि किसी को शुबहा नहीं हो |
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मेरे उरोजों पे रेंगते तेरे होंठ, मुझे मदहोश किये जाते हैं
कुछ करो ना हम तेरे आगोश में बिन पिए बहक जाते हैं 



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  #120   Gift FQ Bandwidth  





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मैं और पापा बाथरूम से निकले तो दिलीप पापा से माफी मांगने लगा की उसे ऐसा इस लिए करना पड़ा ताकि पापा की और मेरी पोल न खुले | पापा गुस्से में कुछ बोलते इससे पहले मैं बोल पड़ी - चलो कोई बात नहीं तुम्हे माफ किया अब तुम फटा फट कपडे पहनो और यहाँ से निकल लो | मम्मी चुदाई देखकर मेरी बुरी हालत थी - दिलीप को मम्मी ने पूरी तरह निचोड़ लिया था और अब सिर्फ पापा का ही सहारा था - मम्मी की चुदाई किसी गैर मर्द के लौंडे से देख कर उनका लंड भी टना टन तैयार था - फिर से पलंग जवान हुआ - पापा ने अपनी बिटिया को जम कर चोदा उसी पलंग पर उसी चद्दर पर जिस पर कुछ देर पहले मम्मी रंडी की तरह चुदवा रही थी - साथ ही मैं सोच रही थी मैं कौन सी किसी रंडी से कम हूँ - वैसे होली पर तो सब जायज है |

Sunday, 13 October 2013

meri padosan ,

पहले मैं अपने लण्ड से परिचित कराता हूँ जिसने बहुत सी चूत की गहराइयों को नापा है। मैं 21 साल का हूँ और मेरा लंड 8" लम्बा है। 
अब मैं अपनी कहानी पर आता हूँ जो आज से डेढ़ साल पहले घटी थी। मैं दिल्ली में नया ही आया था। बात नवम्बर 2010 की है, मैं दिल्ली के रोहिणी में रह रहा था। मैंने कमरा किराए पर लिया था। पहले दिन ही मैं बालकॉनी में खड़ा था कि मेरी नज़र सामने वाले मकान की तरफ गई तो सामने एक खूबसूरत बाला दिखाई दी। 
देखते ही मेरे मन में उसे चोदने की इच्छा हुई और बाथरूम में जाकर उसके नाम की मुठ मारी। फिर आकर मैं वहीं बैठ गया। 
इस बीच हम दोनों की नज़रें एक दो बार मिली। फ़िर वो नीचे चली गई। ऐसा करते करते एक महीना बीत गया। मुझसे रुका नहीं जा रहा था। मैं रोज नए-नए तरीके सोचता लेकिन कुछ नहीं होता। एक दो बार उसकी मम्मी सड़क पर दिखी तो मैंने नमस्ते की, थोड़ी बात भी की तो पता लगा कि वो बारहवीं में पढ़ रही थी। 
एक दिन उसकी मम्मी ने बोला- बेटा, हमारा कंप्यूटर चल नहीं रहा है। शायद तुम कुछ कर सको। 
मैं यहाँ बता दूँ मैं एक सिस्टम इंजिनियर हूँ। मेरी तो समझो भगवान ने सुन ली हो। बस फिर क्या था मैं सीधा उसके घर पर पहुँचा। वो अपने किसी प्रोजेक्ट पर काम करने को बैठी थी। वो मेरे को लेकर अपने कमरे में गई। 
आंटी यह कह कर चली गई- तुम देखो, मैं चाय बना कर लाती हूँ। 
यह तो सोने पर सुहागा था। ये वो पल था जब हम दोनों पहली बार इतनी करीब थे। मैंने पेंचकस लिया, पी.सी. को खोला, देखा तो रैम ढीली थी। पी.सी ऑन होते ही उसने थैंक्स बोला। 
मैंने बोला- यह किसलिए? 
बोली- पी.सी. को चलाने के लिए। 
मैंने सीधे कहा- मुझसे दोस्ती करोगी? 
लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया और मैंने चाय पी और चला आया। 
अगले दिन आंटी फिर आई, पता लगा कि कल वाली परेशानी आज फ़िर है। मैं फिर गया। तब तक आंटी को कोई काम आ गया। वो चली गई और हम दोनों अकेले थे। 
मैं पी.सी. को देखने के लिए चला तब तक कोई मेरे पीछे चिपक गया। पलट कर देखा तो वो ही थी, बोली- मैं खुद तुम्हारे लिए बेचैन थी। आज मम्मी बाहर गई हुई है, हम दोनों के पास दो घंटे हैं। 
मेरी तो समझो लॉटरी ही निकल आई हो। मैंने तुरंत उसको गले से लगा लिया और होंठों को चूसने लगा। 
वो बोली- रुको, पहले दरवाजा बंद करके आती हूँ। 
दो मिनट में वो आई, मैंने उसे तुरंत पकड़ कर बेड पर डाल लिया। मैं उसके होंठों को चूस रहा था, वो भी मेरा साथ दे रही थी। मैंने उसके होंठों को चाट कर लाल कर दिया था। मेरा एक हाथ उसके मम्मों पर था, मम्मे ज्यादा बड़े नहीं थे। 
अब वो भी गर्म हो रही थी, धीरे धीरे मैंने अपना हाथ उसके टॉप में डाला और उसके मम्मे निकालने की कोशिश की लेकिन टॉप ज्यादा टाइट था। तो फिर उसका टॉप उतार दिया। अब वो सिर्फ गुलाबी रंग की ब्रा में थी। उसमें वो मानो बला की खूबसूरत दिख रही थी। 
मैंने उसकी ब्रा को भी उसके बदन से अलग कर दिया लेकिन जींस अभी उसकी चूत को ढके हुए थी, मैंने उसके मम्मों को खूब दबाया। अब मेरा हाथ नीचे जाने लगा, जब उसके पेट पर पहुँचा तो वो सिहर गई। 
मैंने हाथ पीछे ले जाकर उसको थोड़ा उठाया और जींस भी निकाल दी। लाल रंग की चड्डी में वो मेरे दिल को घायल कर गई। मैंने सीधा उसकी चड्डी को चूम लिया लेकिन फ़िर उसकी चड्डी को भी उतार दिया, अब वो पूरी नंगी हो चुकी थी।अब उसकी बारी थी तो वो भी अपने काम में लग गई। पहले मेरी शर्ट फिर बनियान को उतार दिया, मेरी पैंट भी उसने उतार दी। 
अंडरवीयर के अन्दर ही मेरा लण्ड खड़ा हो गया था। उसे देखते ही उसका मन खिल गया। झट से उसने अंडरवीयर को नीचे खींच दिया और लण्ड को अपने मुंह में ले लिया। अब मुझे लगा कि वो कुंवारी नहीं है बल्कि दो चार लंड तो उसकी चूत में उतर चुके हैं। 
लगभग 15 मिनट तक वो मेरा लौड़ा चूसती रही, उसके बाद हम दोनों बिस्तर पर लेट गए। 
अब मैं उसकी चूत को चाट रहा था और वो मेरे लंड को चूस रही थी। थोड़ी ही देर में उसकी चूत से पानी निकालने लगा। मैंने सारा पानी चाट कर दिया लेकिन तब तक मैं भी झड़ चुका था। मेरे माल से उसका पूरा मुँह भर गया। हम दोनों कुछ देर तक शांत रहे। थोड़ी देर में मेरा लंड फिर खड़ा हुआ और मैं उसे लगातार चूमता रहा।उसके मम्मे भी तन गए थे। वो भी पूरे शवाब पर थी, पर मुझसे किसी ने कहा था कि लड़की को जितनी देर से चोदना चाहिए उतना ही मज़ा आता है। तो मैं सिर्फ चूम ही रहा था। वो अजीब सी आवाज़ें निकालने लगी- चोद दो मुझे... जल्दी करो.. 
मैं मज़े ले रहा था। मैं उसे मम्मे दबाता रहा। मैंने भी ज्यादा देर करना सही नहीं समझा और उसकी चूत पर लंड रखा एक हल्का सा झटका दिया। 
थोड़ा ही घुसा "आआआईईईई" उसके मुँह से चीख निकल गई। 
मैंने हल्का पीछे होकर और एक जोर से धक्का मारा। 
" आआआआअईईईईई...." एक लम्बी सी आवाज़ के साथ मेरा लंड पूरा उसकी चूत में समां चुका था। जब उसका दर्द थोड़ा कम हुआ तो मैंने धक्के लगाना शुरु किया। हम दोनों एक दूसरे का साथ देते रहे, तभी मैंने झटकों की तेजी बढ़ा दी, वो समझ गई कि मैं झड़ने वाला हूँ, बोली- अन्दर ही छोड़ दो। मैं दवा ले लूंगी। 
एक साथ हम दोनों झड़े फिर दोनों बाथरूम गए, साथ साथ नहाए। 
उसके बाद हम दोनों ने कॉफ़ी पी। उसके बाद मैं एक किस लेकर चला आया। 
उसके बाद मैं उसे आज तक चोद रहा हूँ। दूसरी बार मैंने कब कहाँ और कैसे चोदा... पढ़ने के लिए मुझे इस कहानी के बारे में बतायें कि कैसी लगी। 

Friday, 1 March 2013

भाभी को चुदना ही पड़ता है -2


उसने स्पष्ट रूप से मेरा अपना रिश्ता बता दिया। मुझे कुछ शर्मिंदगी सी भी हुई... बुरा भी लगा, गुस्सा भी आया...

पर मैंने अपने आप को सम्भाला...

"ओह अंकित... ऐसा कुछ भी नहीं है... बस तुझे नीचे देखा तो ऊपर ले लिया... अब सो जा..."

हम दोनों इस झूठ को समझते थे... पर एक नाकामयाब परदा सा डालने का प्रयत्न किया था। मैं दूसरी ओर करवट लेकर लेट गई और आत्मग्लानि से भर उठी।

इतना कुछ तो वो करने लगा था ! फिर यह ना नुकुर...? समझ में नहीं आई थी।

कुछ ही देर बाद पीछे से उसने मेरा पेटीकोट ऊपर सरकाया।

अरे ! यह अब क्या करने लगा है? मैं बस इन्तजार करने लगी। उसने मेरा पेटीकोट उठा कर मेरी कमर से ऊपर कर लिया और फिर से मेरे चूतड़ों की गोलाइयों पर हाथ घुमाना आरम्भ कर दिया। इस बार तो वो पक्का जानता ही था कि मैं नींद में नहीं हूँ ! फिर...?

मैंने उसे पीछे घूम कर देखा। वो मदहोशी में मेरे चूतड़ों को जोर जोर से दबा रहा था... सिसकार भी रहा था।

अब तो उसके हाथ मेरे सीने पर भी आ गये थे। एक हाथ उसका लण्ड पर भी था। मेरे तने हुये उरोज और भी कठोर हो गये... निप्पल कड़े होकर सीधे तन गए।

मुझे बहुत तेज आनन्द आने लगा था। उफ़्फ़्फ़ ! करने दो जो यह करना चाहता है।

उसके हाथ अब मेरे कठोर स्तन को दबा रहे थे। मेरी चूत तो पानी पानी हो रही थी। मेरा मन तो चुदने को बेताब होने लगा था।

"अंकित... प्लीज अब कुछ कर ना..."

"अह... नहीं भाभी... नहीं, आप बहुत अच्छी हैं..." कहकर उसने मुझे चूम लिया।

फिर तो मैं तड़प सी उठी। उसका कड़ा तन्नाया हुआ लण्ड मेरी गाण्ड में घुस कर छल्ले को कुरेदने लगा। उसके हाथों ने मेरी चूत पर कब्जा जमा लिया, मेरी चूत को वो जोर जोर से दबाने लगा। तभी उसके लण्ड ने जोर से मेरी गाण्ड में बिना लण्ड घुसाये ही छल्ले से लण्ड दबा कर वीर्य उगल दिया। मेरी चूतड़ों की गोलाइयाँ उसके वीर्य से गीली हो गई... चिकनाई से भर गई।

उफ़ ! यह क्या कर दिया लाला... बिन चोदे ही माल निकाल दिया?

मैंने धीरे से दो अंगुलियाँ अपनी चूत में घुसा ली और अन्दर-बाहर करके अपना भी रस निकाल लिया।

चलो मेरे लिये आज तो इतना ही बहुत है। धीरे धीरे जोश आने पर तो मुझे वो चोद ही देगा। मेरे दिल से एक ठण्डी आह निकल गई।

सवेरे मेरी आँख जल्दी खुल गई। देखा तो सवेरे के पांच बज रहे थे। मैंने देखा तो अंकित मेरे पास नंगा पड़ा बेहाल सो रहा था। मैं जल्दी से उठी और वीर्य जो कि सूख कर कड़ी परत की तरह जम गया था उसे धोने के लिये बाथरूम में चली आई। मैं तो स्नान करके तरोताजा हो गई फिर अपना तौलिया गीला करके अंकित के पास आ गई। उसका लण्ड भी सूखे वीर्य से सना हुआ था पर खड़ा हुआ था। साला अभी भी कोई चोदने का सपना देख रहा है।

मुझे हंसी भी आई पर ना चुदने का अफ़सोस भी हुआ। मैंने उसका लण्ड गीले तौलिये से अच्छी तरह से साफ़ कर दिया। आस पास का बिखरा हुआ वीर्य भी साफ़ कर दिया।

उसका लण्ड इस दौरान और भी सख्त हो गया था। मैंने खेल खेल में उसके लण्ड को हौले हौले से मुठ्ठ मारना आरम्भ कर दिया। मुठ्ठ मारने से उसका लण्ड और भी खिल गया। सुपाड़ा रक्ताभ होने लगा था। लण्ड फ़ूल कर मोटा और कठोर हो गया था। उसके टोपे को मैंने अपनी अंगुली से सहलाया। उसके चीरे पर गुदगुदाया...

चीरे में से दो बून्द रस की छलक आई। मैंने धीरे से उसे चाट लिया। फिर मन मचल गया... मैंने उसका लण्ड अपने मुख में ले लिया... और चूसने लगी।

उसकी सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मेरी सांसें अब तेज हो गई थी... कुछ करने को मन मचल गया था... मैं उसके ऊपर बैठ गई और उसकी कमर जकड़ ली... मैंने अपनी चूत को दोनों अंगुलियों से चौड़ा कर के उसका रक्ताभ सुपाड़ा अपनी खुली हुई चूत में डाल लिया।

"अरे भाभी... प्लीज ये मत करो... प्लीज... प्लीज !"

उसने अपनी आँखें खोल कर मुझे धकेलने की कोशिश की। पर मैंने इतनी देर में अपनी चूत उसके लण्ड पर दबा दी थी। लण्ड चूत को चीरता हुआ काफ़ी अन्दर तक उतर गया था।

"उफ़ ! यह क्या कर दिया भाभी... मुझे अब पाप लगेगा...!"

मैंने उसे और दबाते हुये लण्ड को पूरा चूत में घुसा लिया, उसके ऊपर मैं लेट ही गई।

"कुछ नहीं होगा देवर जी... यह सब काम तो देवर भाभी के रिश्ते में समाया हुआ होता है। देवर से तो भाभी को चुदना ही पड़ता है... फिर देवर तो भाभी को कब चोदने की तलाश में रहता ही है।"

"आह्ह्ह... मार डालोगी आप तो मुझे... बहुत मजा आ रहा है भाभी।"

"तभी तो... भाभियाँ देवर पर मरती हैं... बहुत मजा आता है देवर से चुदाने में..."

"बस करो भाभी... अब मार डालो मुझे ! जोर से भचीड़ दो ना..."

"अरे तू ऊपर आकर मुझे दबा कर चोद दे..."

उसने पलटी मारी और मेरे ऊपर सवार हो गया और जोर जोर से मुझे भचीड़ कर चोदनेलगा।

आह... साले ने बहुत नखरे दिखाये... पर पट ही गया ना।

"उह्ह्ह ! मेरे देवर... मार और जोर से... चोद दे मेरे राजा... दे... और दे... फ़ाड़ दे मेरी भोसड़ी राजा..."

"उफ़्फ़ मेरी भाभी... मार डालो मुझे आज... कितनी मस्त हो आप... आपकी ये चूचियां... कितनी कठोर हैं।"

मैं अपनी चूचियां दबने से बेहाल थी... इतनी जोर से तो मेरे पति ने भी नहीं चोदा था मुझे और अब क्या चोदेगा... अब तो देवर ही मेरा सब कुछ है।

उस सुबह मैं उससे दो बार चुद गई... एक बार उसने मेरी गाण्ड भी चोद दी थी।

उसने मुझे पूरी तरह से सन्तुष्ट कर दिया था... पर यह तो शुरूआत थी।

"देवर जी रात को तो बड़े नखरे दिखा रहे थे?"

"सच बताऊँ भाभी... आपको देख कर मैंने बहुत बार मुठ्ठ मारी थी... पर रिश्ता तो भाभी का था ना... फिर भैया का आदर... यह तो पाप होता ना..."

"कुछ पाप नहीं होता है... बस जब कोई दूसरा चोदता है तो लोग जल जाते हैं और जलकर बुरा भला कहते हैं... यदि उन्हें कोई चूत मिल जाये तो देखो... उनकी कैसी लार टपकती है।"

"पर जब आपने दीवार तोड़ ही दी तो मैंने आपका यह पाप अपने सर ले लिया..."

"नहीं यह पाप नहीं है... भैया तो अब कुछ कर नहीं सकते हैं ना... बाहर जाकर चुदवाने से तो बड़ी बदनामी होती, तो घर की बात घर में... कितना सुरक्षित और रोमान्टिक है ना। ना कहीं जाना ना कोई खतरा... देवर का टनाटन लण्ड... और भाभी की चिकनी रस भरी चूत..."

"धत्त भाभी... आप तो बेशरम होने लगी है..."

अंकित धीरे धीरे मेरे पास आने लगा और धीरे से उसने हाथ मेरी तरफ़ बढ़ाये।

"शरमाओ मत मेरे देवर जी... अब तो मै आपकी हूँ... चाहे जैसे दबा लो मुझे... चाहो जब चोद दो मुझे..."

अंकित शरमा गया और पास आकर उसने मेरी दोनों चूचियों के मध्य अपना चेहरा दबा लिया।

उफ़्फ़ दैया ! मेरी तो धड़कनें बढ़ने लगी... चूचियां फ़ूलने लगी। चूत गुदगुदाने लगी... तभी अंकित के मोटे और टन्टनाते हुये लण्ड ने मेरी चूत पर दस्तक दी... उसने मुझे उठा कर बिस्तर पर पटक दिया... पलंग चूं चर्रर्रर्र करने लगा...

"अरे धीरे देवर जी... पलंग टूट जायेगा !!!" मैं उसके नीचे दब गई... मेरी सिसकारियाँ फ़ूट पड़ी। मैं चुदने लगी...

निशा भागवत

Thursday, 28 February 2013

भाभी को चुदना ही पड़ता है -1


जब मैं कॉलेज में पढ़ती थी तब मैं राहुल से बहुत प्यार करती थी।

मेरी एक हमराज सहेली भी थी विभा... वो मेरी राहुल से मिलने में बहुत मदद करती थी। एक तो वो अकेली रहती थी और वो मेरे अलावा किसी से इतनी घुली मिली भी नहीं थी। जब मैं एम ए के प्रथम वर्ष में थी... मुझे याद है मैंने पहली बार अपना तन राहुल को सौंपा था। बहुत मस्त और मोटे लण्ड का मालिक था वो। विभा मुझसे अक्सर पूछा करती थी कि आज क्या किया... कितनी चुदाई की... कैसे चोदा... मजा आया या नहीं...

मैं उसे विस्तार से बताती थी तो वो बस अपनी चूत दबा कर आह्ह्ह कर उठती थी, फिर कहती थी- अरे देख तो सही...

अपनी चूत घिस घिस कर मेरे सामने ही अपना रस निकाल देती थी। मुझे तो राम जी ! बहुत ही शरम आती थी।

राहुल ने मुझे एम ए के अन्तिम वर्ष तक जी भर के चोदा था। कहते है ना वो... चोद चोद कर भोसड़ा बना दिया... बस वही किया था उसने। पहली बार उसने मेरी गाण्ड जब मारी थी तब मैं जितना सुनती थी कि बहुत दर्द होता है... तब ऐसा कोई जोर का दर्द तो नहीं हुआ था। बस पहली बार थोड़ा सा अजीब सा लगा था...

दर्द भी कोई ऐसा नहीं था... पर हाँ जब धीरे धीरे मैं इसकी अभ्यस्त हो गई तो खूब मजा आने लगा था।

पढ़ाई समाप्त करते करते मुझमें उसकी दिलचस्पी समाप्त होने लगी थी। पर चोदने में वो अभी भी मजा देता था... मस्त कर देता था। मैंने धीरे से अपनी मां से शादी की बात की तो घर में जैसे तूफ़ान आ गया। जैसा हमेशा होता आया है... मेरी शादी कहीं ओर कर दी गई। राहुल ने भी मुझसे शादी करने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई थी। बाद में मुझे पता चला था कि वो विभा से लग गया था और उसी को चोदने में उसे आनन्द आता था।

राहुल को न पाकर मैं बहुत रोई थी, बहुत छटपटाई थी। पर विभा की बात जब मैंने सुनी तो सारा जोश ठण्डा पड़ गया था। मैं पढ़ी लिखी, समझदार लड़की थी...

मैंने अपने आप को समझा लिया था। पर उसकी वो चुदाई और गाण्ड मारना दिल में एक कसक छोड़ गई थी। मेरी शादी हो गई थी। मुझे घर भी भरा पूरा मिला था। सास थी... ससुर थे... एक देवर अंकित भी था प्यारा सा, बहुत समझदार... हंसमुख... मुझे बहुत प्यार भी बहुत करता था।

पति सुरेश एक कॉलेज में सहायक प्राध्यापक था। बहुत अनुशासनप्रिय... घर को कॉलेज बना दिया था उसने... उसकी सारी प्रोफ़ेसरी वो मुझ पर ही झाड़ता था। आरम्भ में तो वो रोज चोदता था... पर उसके चोदने में एकरसता थी। कोई भिन्नता नहीं थी... बस रोज ही मेरे टांगों के मध्य चढ़ कर चोद कर रस भर देता था। झड़ तो मैं भी जाती ही थी पर झड़ने में वो कशिश नहीं थी।

एक दिन वो बाईक से गिर पड़े... फ़ुटपाथ के कोने से चोट लगी थी। रीढ़ की हड्डी में चोट आई थी। नीचे का हिस्सा लकवा मार गया था। अब वो अस्पताल में थे...

महीना भर से अधिक हो गया था... पता नहीं ये निजी अस्पताल वाले कब तक उन्हें वहाँ रखते... शायद उन्हें तो बस पैसे से मतलब था। मैंने ससुर से कह कर अंकित को अपने कमरे में सुलाने की आज्ञा ले ली थी। अकेले में मुझे डर भी लगता था।

पर इन दिनों में मुझे अंकित से लगाव भी होने लगा था। वो मुझे भाने लगा था। रात को मैं देर से सोती थी सो बस उसे ही चड्डी में पहने हुये सोते हुये निहारती रहती थी।

उफ़ ! बहुत प्यार आता था उस पर... पर शायद यह देवर वाला प्यार नहीं था... मैं उसके गुप्त अंगों को भी अन्दर तक से एक्सरे कर लेती थी।

एक दिन अचानक मैंने अंकित को देखा कि उसका लण्ड तना हुआ था, चड्डी में से सीधा उभरा हुआ नजर आ रहा था। उसका एक हाथ तभी अपने लण्ड पर आ गया और वो उसे दबाने लगा, शायद कोई मनमोहक सपना देख रहा था।

मैं उत्तेजित हो उठी... उसे ध्यान से देखने लगी। फिर मै उठ कर उसके बिस्तर पर उसके पास ही बैठ गई।

तभी मेरे कान खड़े हो गये... वो मुठ्ठ मारने के साथ मेरा नाम बड़बड़ा रहा था।

मेरे तो रोंगटे खड़े हो गये। मेरे नाम की मुठ्ठ ! हाय रे ! मेरा मुन्ना !

मेरा बेबी... मेरा प्यारा अंकित... मैंने धीरे से हाथ बढ़ा कर लण्ड के नीचे के भाग को छुआ... उफ़्फ़ कैसा कड़क... कठोर था। मैंने धीरे से उसका नाड़ा खोल दिया और उसकी चड्डी धीरे से हटा दी... अंकित ने बाकी चड्डी को हटा कर अपना लण्ड पकड़ लिया।

उसका लाल सुर्ख सुपारा... सुपारे के मध्य में एक छोटी सी लकीर... उसमें से वीर्य की दो बूंदें निकल कर सुपारे पर फ़ैली हुई थी। मैंने

उसके सुपारे पर उंगली से चिकनाहट को स्पर्श किया।

तभी उसके लण्ड ने जोर से पिचकारी निकाल दी। मैंने अपनी आदत के अनुसार अपना मुख खोल लिया और उसकी वीर्य की पिचकारियों को मुख में जाने की अनुमति दे दी।

उफ़ कुवांरा, जवान मस्त गाढ़ा शुद्ध माल... कितना स्वाद लग रहा था। तभी अंकित की सिसकारी ने मेरा ध्यान भंग कर दिया और मैं तेजी से उठ गई।

हुआ कुछ नहीं बस वो करवट ले कर सो गया। मैं अपने बिस्तर से उसे देखती रही...

फिर बत्ती बुझा कर लेट गई। रात भर मुझे अंकित का लण्ड ही दिखता रहा... उसके वीर्य का स्वाद मुँह जैसे में आने लगा।

फिर मजबूरन मुझे उठ कर नीचे बैठना पड़ा और चूत में अंगुली फ़ंसा कर मुठ्ठ मार ली... मेरा सारा पानी छूट गया। फिर मुझे गहरी नींद आ गई।

अंकित को मैं बार बार चोर नजर से देखने लगी, मन में चोर जो घुस आया था।

मेरे मन में तरह तरह के विचार आने लगे। तब मेरे दिमाग में एक बात आई। मेरे पास सुरेश की नींद की गोलियाँ बची हुई पड़ी थी। मन का शैतान जाग उठा... रात को मैंने उसे कैसे करके वो गोलियाँ अंकित को खिला दी। खाना खाने के कुछ ही देर बाद उसे नींद सताने लगी। वो जल्द ही आज सो गया। आधे घण्टे के बाद मैंने उसे हिलाया ढुलाया... वो गहरी नींद में था।

मैंने उसके पास बैठ कर उसकी चड्डी को नाड़ा खोल कर ढीला कर दिया। फिर उसे ऊपर से खींच कर नीचे करके उसका लण्ड बाहर निकाल लिया। सोया हुआ लण्ड छोटा सा हो गया था। मैंने उसे बहुत हिलाया... पर वो खड़ा नहीं हुआ। मैंने अपने मुख में लेकर उसे चूसा भी पर वो टस से मस नहीं हुआ। मुझे बहुत निराशा हुई।

मैंने उसकी चड्डी ऊपर सरका दी। पर मैं उसे बांधना भूल गई। सुबह जब वो उठा तो उसे शायद कुछ महसूस हुआ। मैंने उसे देख तो झेंप गई।

भाभी... माफ़ करना... जाने कैसे ये चड्डी का नाड़ा रात को अपने आप कैसे खुल जाता है।

"जरूर तुम कुछ रात को कोई शरारत करते हो?" मैंने मजाक किया।

वो शरमा सा गया। उसने जल्दी से नाड़ा बांध लिया। पर शायद उसे शक हो गया था। पर फिर वो दिन भर सामान्य रहा। मैंने सावधानी बरती और आज कुछ नहीं किया। बस उसके सोते ही मैं भी लेट गई। पर नींद कहां थी? तभी मुझे अंकित के उठने और चलने की आवाज आई। मैं सतर्क हो गई... यह अंकित मेरे बिस्तर के पास क्या कर रहा है?

मैं दिल थाम कर कुछ होने का इन्तजार करने लगी।

ज्यादा इन्तजार नहीं करना पड़ा। वो मेरी बगल में लेट गया, फिर उसने मेरे पेटीकोट के ऊपर से ही मेरे कूल्हे पर हाथ रख दिया। मैं कांप सी गई। उसने हौले से हाथ फ़ेर कर मेरे सुडौल चूतड़ों का जायजा लिया।

अन्दर ही अन्दर मुझे झुरझुरी छूट गई। उसे रोकने का मतलब था कि आने वाले सुख से वंचित रह जाना। मैं सांस रोके उसकी मधुर हरकतों का आनन्द लेने लगी। अब वो मेरे चूतड़ के गोले एक एक करके दबा रहा था। उसकी हरकत से मेरा दिल लहूलुहान हो रहा था। चूत बिलबिला उठी थी। उसका हाथ गाण्ड के गोले सहलाते हुये चूत तक पहुँच रहा था...

मेरा मन बुरी तरह से डोलने लगा था। तब शायद उसने उठ कर मेरा चेहरा देखा था। मुझे गहरी नींद में सोया देख कर उसके हाथ मेरी चूचियों पर आ गये, मेरे ढीले ढाले ब्लाऊज के ऊपर से ही उसने उन्हें सहला दिया, मेरी निप्पल उसने उंगलियों के पौरों में लेकर मसल दिए।

मेरा मन चीख उठा... चोद दे रे... हाय राम इतना तो मत तड़पा... !

मैंने सोचा कि यदि मैं सीधे लेट जाऊँ तो शायद यह मेरे ऊपर चढ़ जाये और चोद दे मुझे।

मैं धीरे से सीधे हो गई... पर वो चुप से किनारे हो गया। तभी मैंने खर्राटे लेने जैसी आवाज की... तो वो समझ गया कि मैं अभी भी गहरी नींद में ही हूँ।

उसने ध्यान से मेरे पेटीकोट की तरफ़ देखा और पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया।

मेरा दिल अब खुशी के मारे उछलने लगा... लगा बात बन गई। पर नहीं ! उसने बस मेरा पेटीकोट धीरे से नीचे किया और मेरी चूत खोल दी, उस पर अपनी अंगुली घुमाने लगा।

चूत पूरी भीग कर चिकनी हो चुकी थी। मैंने भी जान कर अपनी टांगें चौड़ा दी। उसने सहूलियत देख कर अपनी एक अंगुली मेरी चूत में पिरो दी।

मुझे अचानक महसूस हुआ कि उसका लण्ड बेतहाशा तन्ना रहा था, बहुत ही सख्त हो गया था। वो मेरे कूल्हों से बार बार टकरा रहा था। फिर वो उठा और धीरे से उसने मेरा मुख चूमा... और बिस्तर से धीरे से सरक कर नीचे उतर गया।

मेरा मन तड़प उठा। उफ़्फ़्फ़... मेरी तरसती चूत को छोड़ कर वो तो जा रहा था। अब क्या करूँ?

पर वो गया नहीं... वहीं नीचे बैठ गया और अपनी मुठ्ठ मारने लगा।

मेरा दिल तो पहले ही पिंघल चुका था। उसे मुठ्ठ मारते देख कर मुझसे रहा नहीं गया, मैंने उसकी बांह पकड़ ली- यह क्या कर रहे हो देवर जी... उठो !

वो एकदम से घबरा गया- वो तो भाभी... मैं तो...

"श्...श्... भाभी का पेटीकोट उतार दिया... चूत में अंगुली घुसेड़ दी... अब और क्या देवर जी?"

"वो तो... मैं तो..."

"चुप... चल ऊपर आ जा..."

मैंने उसे अपने बिस्तर पर लेटा लिया और उससे चिपक गई।

"अरे भाभी सुनो तो...! यः क्या कर रही हैं आप...?"

यह सुन कर मुझे एकदम होश आ गया, मैंने आश्चर्य से उसे देखा- क्या हो गया देवर जी? अभी तो आप...

"पर यह नहीं... आप भाभी हैं ना मेरी... मैं यह सब नहीं कर सकता... प्लीज !"

उसने स्पष्ट रूप से मेरा अपना रिश्ता बता दिया। मुझे कुछ शर्मिंदगी सी भी हुई... बुरा भी लगा, गुस्सा भी आया...

पर मैंने अपने आप को सम्भाला...

ओह अंकित... ऐसा कुछ भी नहीं है... बस तुझे नीचे देखा तो ऊपर ले लिया... अब सो जा...

देखेंगे आगे क्या हुआ !

निशा भागवत

Wednesday, 27 February 2013

छप्पर फाड़ कर-2


मैंने उसके उरोजों को सहलाना शुरू किया। उरोज क्या थे दो रुई के गोले थे। सुगंधा के उरोज तो इसके सामने कुछ भी नहीं थे। मेरा लिंग पजामें में तंबू बना रहा था। मैंने उरोजों को जोर जोर से मसलना शुरू किया तो उसके मुँह से कराह निकली।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठाई, उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली, “कोई आ जाएगा।”

मैं झुका और उसके पेट के खुले भाग को चूमने लगा। वो गुदगुदी और आनंद के मिले जुले प्रभाव से सिसकने लगी। अब मैं दो काम एक साथ कर रहा था उसके पेट पर चूम रहा था और साथ ही साथ उसकी टीशर्ट उठा रहा था। उसके हाथों की विरोध करने की ताकत खत्म होती जा रही थी।

कुछ पलों बाद मैं उसकी टीशर्ट उठा कर उसके गले तक ले आया और उसकी सफ़ेद ब्रा के आसपास के नग्न स्थानों को चूमने लगा। मैंने उसके ब्रा का दायाँ कप हटाया। उसके दूधिया उभार पर छोटा सा चुचूक मेरा इंतजार कर रहा था। मैंने उसपर अपना जलता हुआ होंठ रखा।

नेहा का पूरा बदन सिहर उठा। मैंने चूचुक को अपनी जीभ से चाटना शुरू किया। वो मचलने लगी। मैंने चूचुक अपने मुँह में भर लिया और चूसने लगा। नेहा की हालत खराब होने लगी। चूसते चूसते ही मैंने उसकी ब्रा का बायाँ कप हटाया और उसके बाएँ उभार को कस कर मसलने लगा। कितने बड़े बड़े उरोज थे मेरी पूरी हथेली में उसका आधा उरोज भी नहीं आ रहा था।

फिर मैंने उसको बैठने को कहा और उसकी टीशर्ट बाहर खींचने लगा। उसने कोई विरोध नहीं किया और मैंने पीछे से हुक खोलकर उसकी ब्रा भी उतार दी। उसके उभार हल्का सा नीचे हो गए। बड़े उभारों के साथ यही समस्या होती है बहुत कम उम्र में ही ढीले होना शुरू हो जाते हैं इसलिए बड़े उभारों का असली आनंद तो अठारह की उम्र में ही मिल पाता है।

सुगंधा की जींस उतार कर मैं देख चुका था कि लड़कियों की जींस उतारना कितना मुश्किल काम है। मैंने उसके गले पर चूमते चूमते उससे कहा, “नेहा अपनी जींस उतार दो।”

वो बोली, “नहीं सर प्लीज, ये सब शादी के बाद।”

हद हो गई, इन अठारह साल की लड़कियों का चुम्बन भी ले लो तो शादी और बच्चों के सपने देखने लगती हैं। इससे अच्छी तो सुगंधा थी कम से कम उसे मालूम तो था कि हम दोनों की शादी नहीं हो सकती।

मैंने कहा, “मैं सेक्स नहीं करूँगा सिर्फ़ तुम्हारी जाँघों और योनि पर चुम्बन लूँगा। मैं और कुछ करूँ तो तुम मुझे तुरंत रोक देना। प्लीज नेहा, जल्दी करो और मत तड़पाओ नहीं तो मैं पागल हो जाऊँगा। तुम तो जानती हो पिछले पंद्रह दिनों से मैं सुगंधा के लिए तड़प रहा हूँ अगर तुमने न देखा होता तो मैं उसे हर रविवार को बुला लेता। अब अगर तुम चाहती हो कि मैं सुगंधा से न मिलूँ तो प्लीज अपनी जींस उतार दो और मुझे अपनी जाँघों और योनि को चूमने दो।”

मेरी बातों को सुनकर और मेरी खराब हालत को देखकर वो समझ गई कि मैं बिना उसको नग्नावस्था में देखे मानने वाला नहीं हूँ। उसने अपनी जींस उतार दी।

'उफ़ ये दूध जैसी गोरी गोरी और गदराई हुई जाँघें !'

इनके सामने सुगंधा की हल्की साँवली जाँघें तो कुछ भी नहीं हैं।

हे कामदेव आज के बाद अगर नेहा मुझे यों ही मिलती रही तो मैं सुगंधा के बारे में सोचूँगा भी नहीं।

मैंने उसे बेड पर अच्छी तरह से लिटा दिया। अब उसके बदन पर सिर्फ़ जॉकी की पैंटी थी जो उसकी गदराई हुई जाँघों पर कयामत लग रही थी और पैंटी के ठीक बीच में उसकी योनि फूल कर कुप्पा हो गई थी।

हे कामदेव इतनी फूली हुई योनि ! धन्यवाद, बहुत बहुत धन्यवाद।

मैंने उसकी जाँघों को चूमना शुरू किया। गोरी, चिकनी, बेदाग अनछुई जाँघें मेरे हर चुम्बन पर सिहर उठतीं थीं।

मैं चुम्बन लेते लेते धीरे धीरे ऊपर आया। उसकी योनि को पैंटी के ऊपर से मैंने चूमा तो उसके पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई। मैंने उसकी पैंटी के इलास्टिक में अपनी उँगलियाँ फँसाईं तो उसने मेरे हाथ पकड़ लिए।

वो बोली, “आप तो कह रहे थे कि सिर्फ़ चूमेंगे।”

मैंने कहा, “ठीक कह रहा था। लेकिन मुझे तुम्हारी नग्न योनि को चूमना है।”

उसने मेरे हाथ छोड़ दिए। मैंने उसकी पैंटी नीचे खींची। उसकी योनि पर बाल ही नहीं थे। मैं दंग रह गया। हे कामदेव ऐसी योनि भी होती है क्या जिस पर बाल ही न हों।

मैंने उसे चूम लिया। वो पूरी तरह सिहर उठी। मैंने उसकी योनि के बीचोबीच बनी पतली सी दरार पर अपनी जीभ रखी। उसकी टाँगें काँप उठीं। अब मुझसे रहा नहीं गया। मैंने उसकी योनि पर अपनी जीभ फिराना शुरू कर दिया। उसका जिस्म काँपना शुरू हो गया। उसकी योनि मेरी लार और उसके योनिरस से गीली होने लगी।

मैंने उसकी टाँगें फैला दीं। उसने कोई विरोध नहीं किया अब मेरी जीभ थोड़ा थोड़ा उसकी दरार में भी उतर रही थी। बिना बालों वाली कुँवारी योनि को चूसने से बड़ा सुख दुनिया में और कहीं नहीं। मैंने उसकी टाँगे और फैला दीं फिर मैं उसकी जाँघों के बीच इस तरह लेट गया कि मेरा मुँह उसकी योनि पर रहे।

इस बार मैंने अपनी उँगलियों से उसकी योनि की दरार फैला दी। अंदर छोटा सा छेद दिखाई पड़ रहा था। मैं अपनी जीभ उसकी दरार में घुसाने की कोशिश करने लगा। नेहा में अब विरोध करने की ताकत नहीं बची थी। वो अब पूरी तरह मेरी थी।

मेरी जीभ थोड़ा सा अंदर घुसी तो उसने अपने नितम्ब ऊपर उठा दिये। मैंने जीभ और अंदर डालने की कोशिश की मगर थोड़ा और अंदर जाने के बाद जीभ पर योनि का कसाव बहुत ज्यादा हो गया। मैं समझ गया कि और अंदर जीभ डालने के लिए पहले इस छेद की चौड़ाई बढ़ानी होगी।

मैंने जीभ छेद से निकालकर उसकी योनि की भगनासा को चाटने लगा और वो अपने नितम्ब उछालने लगी। उसकी भगनासा भी फूली हुई थी। योनि को चूसते चूसते मैंने अपने हाथ नीचे करके अपना पजामा और अंडरवियर नीचे सरका दिए। फिर मैं उसके ऊपर सरक आया। मैंने उसके होंठ चूमने चाहे तो उसने अपना मुँह घुमा लिया।

मैंने पूछा, “क्या हुआ नेहा।”

वो बोली, “आपका मुँह गंदा हो गया है।”

हद है यार ये लड़कियाँ भी न एक दिन जिसे गंदा कहकर उसकी तरफ देखना भी नहीं पसंद करतीं बाद में उसी को मुँह में लेकर लालीपॉप की तरह चूसती हैं। हे कामदेव कहाँ से मिट्टी लाकर तू बनाता है लड़कियाँ।

मैं उसके गालों को चूमने लगा। चूमते चूमते मैंने अपनी कमर और ऊपर उठाई। अब मेरा लिंग नेहा की मुलायम योनि पर था। उफ इसकी योनि कितनी गद्देदार है। मैं अपनी कमर हिलाकर अपना लिंग उसकी योनि पर रगड़ने लगा। फिर मैंने अपने हाथ से लिंग को पकड़कर योनि की गीली दरारों से रगड़ रगड़ कर गीला किया। जब मुझे लगा कि लिंग में पर्याप्त गीलापन आ गया है तो मैंने उसकी योनि के छेद पर अपना लिंग रखा और हल्का सा दबाव बढ़ाया। जल्द ही मेरा लिंग उसकी दरार से गुजरते हुए उसकी गुफा के द्वार पर जाकर अटका। मैं जानता था कि धीरे धीरे डालूँगा तो ये दर्द के मारे मुझे अपने ऊपर से हटा देगी। इसलिए मैंने अपनी पूरी ताकत लगाकर एक जोरदार झटका मारा।

लिंगमुंड आधा ही अंदर गया लेकिन नेहा किसी जिबह होती बकरी की तरह चिल्लाई। वो सुगंधा की तरह दुबली पतली तो थी नहीं। मोटी भी नहीं थी मगर हट्टी कट्टी थी। उसने मुझे अपने ऊपर से धकेल दिया। उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे वो रोए जा रही थी। मैंने उसकी योनि की तरफ देखा। वहाँ से खून रिसकर कर चादर पर गिर रहा था। मैंने इतना बड़ा लिंग देने के लिए कामदेव को कोसा।

मैंने अपना तौलिया उठाया और उसकी योनि से खून साफ करने लगा। कुछ पलों बाद खून का बहना रुक गया तो मैंने उसकी योनि को फैलाना चाहा। वो फिर दर्द से सिसक उठी। मैं समझ गया कि आगे कुछ करना ठीक नहीं होगा। मगर सुगंधा की योनि में से तो इतना खून नहीं निकला था। ये क्या माज़रा है। मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होंठों और गालों को चूमने लगा।

मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ, नेहा?”

वो बोली, “बहुत दर्द हो रहा है। लगता है मैं मर जाऊँगी।”

मैंने कहा, “आखिर शादी के बाद तो तुम्हें ये सब करना ही होगा। शादी के बाद कैसे करोगी।”

वो बोली, “पता नहीं। लेकिन मैं अब कभी सेक्स नहीं करूँगी। बहुत दर्द हो रहा है।”

मैंने कहा, “तो फिर मैं क्या करूँ। मेरा क्या होगा नेहा।”

वो बोली, “आप सुगंधा के साथ ही कर लो। मैं नहीं कर सकती।”

मैंने कहा, “चलो आज नहीं, अगले रविवार को फिर प्रयास करेंगे।”

वो बोली, “नहीं, कभी नहीं।”

मैंने कहा, “तो फिर शादी के बाद क्या करोगी। ऐसा करोगी तो शादी की पहली रात को ही तुम्हारा पति तुम्हें तलाक दे देगा।”

वो बोली, “तो मैं क्या करूँ।”

मैंने कहा, “किसी डॉक्टर को दिखा लो हो सकता है तुम्हारी योनि की मांसपेशियों में कुछ समस्या हो।”

वो बोली, “नहीं, मैं क्या कहूँगी डॉक्टर से कि मैं योनि में लिंग घुसवा रही थी और वो नहीं घुस रहा था आप चेक करके बताइए कि क्या समस्या है।”

इस अवस्था में भी मैं हँस पड़ा, मैंने कहा, “तो एक काम करता हूँ। सुगंधा तो जान ही चुकी है कि तुम मुझे और उसको संभोग करते हुए देख चुकी हो, मैंने झूठ बोला, अब उसके और मेरे बीच में कोई लाज शर्म तो बची नहीं है। मैं उससे बात करता हूँ। वो जीव विज्ञान की छात्रा है। हो सकता है वो तुम्हारी इस समस्या का कोई समाधान बता सके। नहीं तो तुम्हारी शादी के बाद क्या होगा।”

मैंने उसे डराया। अब शायद वो मुझसे शादी का तो क्या शादी करने के बारे में ही अपना ख्याल बदल चुकी थी।

वो बोली, “मेरे बारे में कुछ मत कहिएगा, कह दीजिएगा कि आप की कोई दोस्त है जिसके साथ आप कर रहे थे और यह समस्या आ गई।”

मैंने कहा, “चलो ऐसे ही सही। अच्छा अब एक काम करो अपनी आँखें बंद करो।”

वो बोली, “क्यूँ?”

मैंने कहा, “भरोसा करो और अपनी आँखें बंद करो।”

उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। मेरे दिमाग तेजी से काम कर रहा था। मुझे अपने लिंग को तो किसी भी तरह से शांत करना ही था। मैंने आलमारी में रखी शहद की शीशी उठाई उसमें से शहद अपने लिंग पर लगाया और उससे बोला, “मुँह खोलो।” सुगंधा के इंकार करने के बाद मैं नेहा को धोखे में रखकर अपना लिंग चुसवाना चाहता था। मेरे पास और कोई रास्ता भी नहीं था।

मैं उसकी छातियों पर इस तरह बैठा कि मेरा भार उस पर न पड़े। उसने मुँह खोला हुआ था। मैंने कहा, “अगर तुम मुझसे सचमुच प्यार करती हो तो अपनी आँख नहीं खोलोगी।”

उसने और कसकर अपनी आँखें बंद कर लीं।

मैंने अपना शहद लगा लिंगमुंड उसके मुँह में डाल दिया। मैंने अपने पैर उसकी बाहों पर रखे हुए थे ताकि वो अपने हाथ से टटोलकर न देख सके कि मैं उसे क्या चुसवा रहा हूँ।

उसे शहद का स्वाद मिला तो उसने चूसना शुरू कर दिया। मुझे मजा आने लगा। आज पहली बार लिंग चुसवाने का सुख मिल रहा था। मैंने अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया अब वो चूस रही थी और मैं अपनी कमर हिला रहा था। अचानक मेरे शरीर में तनाव आया और मेरे लिंग से वीर्य निकल निकल कर उसके मुँह में गिरना शुरू हो गया।

उसने आँखें खोलीं और जो उसने देखा उससे उसके होश उड़ गए। उसने अपना सिर खींचा तो लिंग से निकल रहा वीर्य उसके मुँह पर और उसके मांसल उरोजों पर गिरने लगा।

उसने पूरा जोर लगाकर मुझे अपने ऊपर से ढकेला और बाथरूम की तरफ भागी। बाथरूम से उल्टी करने की आवाजें आने लगीं। बहरहाल मेरा काम हो गया था और नेहा की शुरुआत हो चुकी थी।

अब मुझे सुगंधा और नेहा की मुलाकात करवानी थी ताकि नेहा के मन से लिंग का डर निकाल सकूँ।

मेरा दिमाग आगे की योजना बनाने में व्यस्त हो गया।

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Tuesday, 26 February 2013

छप्पर फाड़ कर-1


सुगंधा को वापस उसके छात्रावास छोड़ने के बाद मैं सभी देवों से इस बार बचा लेने की प्रार्थना करते हुए अपने कमरे पर लौटा (पढ़िए कहानी का पिछला भाग “छुपाए नहीं छुपते”)।

नेहा मेरे कमरे में फ़ोल्डिंग बेड पर पैर लटकाकर बैठी हुई थी और "कामायनी" का सस्वर पाठ कर रही थी। मेरी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। जो कुछ उसने देखा था उसके बाद मेरी उससे निगाह मिलाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने उससे पुस्तक ले ली और मनु और श्रद्धा की कहानी उसे सुनाने लगा। कहानी खत्म होने के बाद मैंने उसे कविता का अर्थ समझाना शुरू किया।

बीच में एक पंक्ति आई- “और एक फिर व्याकुल चुम्बन रक्त खौलता जिससे, शीतल प्राण धधक उठते हैं तृषा तृप्ति के मिष से।”

पढ़ने के बाद मैंने उसकी तरफ देखा। पंक्ति में चुम्बन शब्द आने से उसने थोड़ा बहुत अंदाजा तो लगा ही लिया था कि इसका अर्थ क्या होगा।

मैंने डरते डरते कहा, “इन पंक्तियों को छोड़ देते हैं।”

वो बोली, “क्यों।”

मैंने कहा, “इनका अर्थ अश्लील है।”

वो बोली, “और आप जो कर रहे थे वो अश्लील नहीं था क्या?”

मैंने अनजान बनते हुए पूछा, “मैं क्या कर रहा था?”

वो बोली, “मैं काफ़ी देर से खिड़की के पास खड़ी थी और आपको और सुगंधा को सेक्स करते देख रही थी। आपको शर्म नहीं आती ऐसी घटिया हरकत करते हुए और वो भी अपनी चचेरी बहन के साथ।”

मैंने शर्म से सर झुका लिया और धीमी आवाज़ में बोला, “मुझे माफ़ कर दो नेहा मैं बहक गया था। आज के बाद कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। प्लीज मुझे माफ़ कर दो।”

उसने कहा, “कब से ये सब कर रहे हैं आप दोनों।”

मैंने कहा, “बस ये दूसरी बार है और इसके बाद ऐसा कभी नहीं होगा। प्लीज किसी से कुछ मत कहना इसके बारे में, वरना मैं और सुगंधा दोनों बर्बाद हो जाएँगें।”

उसने कहा, “चलिए इस बार तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी मगर अब कभी अगर आप सुगंधा को यहाँ लाए तो मैं पापा को सब-कुछ बता दूँगी।”

मैंने कहा, “थैंक्यू बेबी, आज के बाद मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।”

मेरी जान में जान आई। मैंने कामदेव को धन्यवाद दिया। एक बड़ा संकट टल गया था।

मैंने वो दो पंक्तियाँ छोड़ दीं और नेहा को आगे का अर्थ समझाने लगा। एक घंटे बाद वो चली गई।

अगले रविवार को नेहा का जन्मदिन था। उसका मुँह बंद रहे इसलिए बेहतर था कि मैं उसे कोई अच्छा सा तोहफा दे देता। मैं उसके लिए अच्छी सी घड़ी खरीद कर लया।

अपने जन्मदिन के अगले ही दिन वो विद्यालय से वापस आते ही स्कर्ट और शर्ट पहने हुए ही छत पर मेरे कमरे में आई और बोली, “थैंक्यू, भैय्या।”

मैं बोला, “यू आर वेलकम, बेबी।”

वो सचमुच बहुत खुश थी। मैंने उसको अठारह साल की हो जाने पर दुबारा बधाई दी और कहा कि अब तुम वोट दे सकती हो और अपनी मर्जी से जिससे चाहो शादी भी कर सकती हो।

वो मुस्कुराने लगी। फिर मैंने उससे पूछा कि विद्यालय में आज क्या पढ़ाया गया। वो बताने लगी। थोड़ी देर हम दोनों में इधर उधर की बातें होती रहीं फिर वो वापस चली गई।

अगले रविवार वो मेरे पास आई तो उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। मैंने उसको इससे पहले भी बाजार वगैरह में जींस और टॉप में देखा था लेकिन दूर दूर से और हमेशा एक बच्ची की नज़र से। आज तो वो कयामत लग रही थी। बिल्कुल कसी हुई टॉप में उसके बड़े बड़े उरोज बाहर निकल आने को आतुर लग रहे थे। इसके सामने सुगंधा के उरोज तो कुछ भी नहीं हैं, मैंने सोचा।

दो सप्ताह से मैं हस्तमैथुन करके काम चला रहा था। लेकिन योनि का रस जिसने एक बार छक कर पी लिया उसका मन हस्तमैथुन से कहाँ भरता है।वो मेरे सामने से गुजरकर फ़ोल्डिंग बेड पर बैठने के लिए गई तो मैंने पीछे से उसके नितम्बों का जायजा लिया।

"हे कामदेव ! इतने बड़े नितम्ब।"

"कहाँ छुपाकर रक्खे थे इस लड़की ने?"

सचमुच भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।

"हे कामदेव, अपने पुष्पबाण वापस तरकश में डाल लो, वरना मैं न जाने क्या कर बैठूँ।"

पर कामदेव जब एक बार पुष्पबाण चलाना शुरू कर देते हैं तो फिर जान निकाले बिना कहाँ मानते हैं। न जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई कि मैंने उससे पूछा, “अपने ब्वायफ्रेंड से मिलकर आ रही हो क्या।”

वो बोली, “नहीं अपने ब्वॉय फ़्रेंड से मिलने जा रही हूँ मगर आपको इससे क्या? आप तो मुझे हिंदी पढ़ाइए और अपनी चचेरी बहन से सेक्स कीजिए।”

मेरा मुँह लटक गया। मुझे उससे ऐसे कटाक्ष की आशा नहीं थी।

उसने मेरी तरफ देखा और मेरा लटका हुआ मुँह देखकर बोली, “मैं तो मजाक कर रही थी। आप तो बुरा मान गए।”

मैंने कहा, “मैंने तुमसे बताया था न कि मुझसे गलती हो गई। इसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ। फिर भी तुम ऐसी बात कह रही हो। उस बात को भूल जाओ और आगे से कभी ऐसा मजाक मत करना नहीं तो मैं कहीं और कमरा ले लूँगा।”

अचानक उसे न जाने क्या हुआ कि वो आकर मुझसे लिपट गई और रोने लगी।

मैं भौंचक्का रह गया।

वो मुझसे लिपटकर रो रही थी, उसके मांसल उरोज मेरे सीने से दबे हुए थे और वो रोए जा रही थी।

कुछ देर मैंने उसे रोने दिया, फिर मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ बेबी?”

वो बोली, “आई लव यू, भैय्या। आई लव यू। आप नहीं जानते आप मुझे कितने अच्छे लगते हैं। मैं कब से आप से प्यार करती हूँ इसलिए उस दिन जब मैंने आपको और सुगंधा को सेक्स करते हुए देखा तो मैं पागल हो गई। यदि आप मुझे न रोकते तो मैं सचमुच पापा को बता देती और जब मुझे यह पता चला कि वो आपकी चचेरी बहन है तो मुझे आपसे नफ़रत होने लगी। पर जब आपने बताया कि आप अपने किए पर शर्मिंदा हैं और आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे तो मैंने दिल से आपको माफ़ कर दिया। अब मैं कभी उस घटना का जिक्र नहीं करूँगी। प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए और अब कभी यह घर छोड़कर जाने की बात मत कीजिएगा।”

मैं जानता था कि यह उम्र होती ही ऐसी है जिसमें लड़की आकर्षण और प्यार में अंतर नहीं कर पाती। मेरे जैसे स्मार्ट लड़के पर उसका आकर्षित होना कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन वो आकर्षण को प्यार समझ बैठी थी। ये कमसिन और नादान उम्र की लड़कियाँ भी न, दूध के दाँत भी अभी ठीक से नहीं टूटे कि दुनिया की सबसे जटिल भावना “प्रेम” को समझ पाने और प्यार होने का दावा करने लगती हैं।

मैंने कहा, “भैय्या भी कहती हो और आई लव यू भी कहती हो। मैं एक बार गलती कर चुका हूँ दुबारा नहीं करना चाहता।”

अब उसका रोना बंद हुआ और वो बोली, “आई लव यू, सर !”

मैं बोला, “अब ठीक है, लाओ किताब दो और उधर बैठो।”

वो बाथरूम से अपना चेहरा धोकर आई। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। मेरी निगाह उसके मांसल उरोजों पर जाकर रुकी। उसने मेरी निगाह का पीछा किया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गए।

मैंने अपनी बाहें फैला दीं। वो सर झुकाकर धीरे धीरे आई और मेरी बाहों में सिमट गई। मैंने कसकर उसे खुद से भींच लिया। उसके बड़े बड़े उभार मेरे सीने में चुभकर अजीब सी गुदगुदी कर रहे थे। मैंने उसके बालों में उँगलियाँ फेरनी शुरू कीं। फिर उसकी पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया।

वो मुझसे लिपटी हुई थी। मुझे पता था कि एक बार सचमुच का सेक्स देखने के बाद अब तो इसका मन करता होगा कि इसके साथ भी वही सब कुछ हो।

मैं डरते डरते अपना हाथ उसके नितम्बों पर ले गया।

"हे कामदेव इसके नितम्ब तो सुगंधा के नितम्बों से तिगुने हैं।"

उसने कोई विरोध नहीं किया। मैं उसके नितम्बों को धीरे धीरे सहलाने लगा। फिर मैंने उसके नितम्ब को पकड़कर उसे और करीब खींच लिया। उसकी जाँघें मेरी जाँघों से सट गईं। उसका गदराया हुआ बदन बाहों में भरने का आनंद ही अलग था।

उससे चिपके चिपके ही मैं उसे बेड के पास ले गया और उसे बेड पर लिटाने लगा। वो मुझसे अलग होने को तैयार ही नहीं थी। मैंने उसके गालों पर फिर होंठों पर चुम्बन लिया। उसके गले पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसकी टीशर्ट के खुले हुए हिस्से पर चुम्बन लिये। उसके बाद मैंने उससे कहा, “लेट जाओ नेहा। मैं तुम्हारे साथ जो कुछ करना चाहता हूँ वो खड़े खड़े नहीं हो सकता।”

वो मुझसे अलग हुई। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। वो आधी बेड पर थी लेकिन उसके पैर बेड के नीचे लटके हुए थे। मैं उसके बगल बैठ गया। उसकी साँसें पहले की अपेक्षा तेज हो गई थीं। मैंने अपना एक हाथ उसके माँसल उभार पर रखा।

वो सिहर उठी।

मैं धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाने लगा।

पहली बार संभोग के लिए तैयार लड़कियों का कोई भरोसा नहीं होता पता नहीं कौन सी बात पर नाराज हो जाएँ और आगे बढ़ने से इंकार कर दें। इसका मूल कारण उनका डर और संभोग के संबंध में उनकी अज्ञानता होती है। इसलिए पहली बार जब भी किसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाएँ धीरे धीरे और बिना किसी जबर्दस्ती के बनाएँ। लड़की अगर इंकार करे तो आगे न बढ़ें वरना जबरदस्ती आप इधर उधर हाथ तो लगा लेंगे मगर साथ ही भविष्य में संभोग की सारी संभावनाएँ खत्म कर लेंगे।

मैंने अपना दूसरा हाथ उसके दूसरे उरोज पर रखा। उसकी साँसें और तेज हो गईं।

मैंने उसके उरोजों को सहलाना शुरू किया। उरोज क्या थे दो रुई के गोले थे। सुगंधा के उरोज तो इसके सामने कुछ भी नहीं थे। मेरा लिंग पजामें में तंबू बना रहा था। मैंने उरोजों को जोर जोर से मसलना शुरू किया तो उसके मुँह से कराह निकली।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठाई, उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली, “कोई आ जाएगा।”

आगे क्या हुआ? जानने के लिए इंतजार कीजिए कहानी के अगले भाग का !

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Sunday, 24 February 2013

कॉलेज की मौजमस्ती बड़ी मजेदार



दोस्तों मेरा नाम नीलम है और मै एक कॉलेज मे पढ़ती हु | मै अव्वल दर्जे की बिंदास लड़की हु और सारे लडको को अपने तलवों के नीचे रखती हु; लेकिन मै शुरू से ऐसी नहीं थी | मै एक निहायत ही शरीफ परिवार से हु और मेरे अभिभावक सपने मे भी किसी के साथ गलत करने का भी नहीं सोच सकते है | उन्होंने ने भी मुझे अपने जैसे ही शिक्षा दी है और मेरा कभी किसी से बैर नहीं था | स्कूल तो मेरा, सही सलामत निकल गया; लेकिन कॉलेज के शुरुवाती दिनों मे जो मेरे साथ हुआ, उसने मुझे पूरा बदलकर रख दिया | जब मै कॉलेज मे आयी थी, तो मैने रैगिंग के बारे मे काफी सुना था, लेकिन मै खुशकिस्मत थी कि मुझे इसका सामना कुछ दिन तक तो नहीं करना पड़ा | कुछ दिनों बाद हालात बदल गये और उन हालातो ने मुझे भी बदलकर रख दिया |मेरे हॉस्टल मे, मेरी एक सीनियर थी सीमा; वो हमारी भाषा मे लड़कियों की गुंडी थी और सारी लड्किया उसे डरती थी |

जब उसकी नज़र मुझ पर पड़ी, तो उसने मेरा जीना हराम कर दिया | उसका आशिक भी लडको का गुंडा था और कॉलेज के बड़े आदमी का बेटा था, तो उसको कोई कुछ भी नहीं बोलता था | एक रात सीमा ने, मुझे बुलाया और काम करने को कहा, मैने किसी आज्ञाकारी बच्चे की तरह वो काम कर दिया | सीमा ने खुश होकर मुझे वापस भेज दिया और अगले दिन रात मे भी आने को बोला | मुझे लगा, कि अगले दिन भी कोई छोटा-मोटा करवा कर वो मुझे भेज देगी और खुश हो जाएगी | लेकिन, जब मै उसके कमरे मे पहुची, तो उस दिन का नज़ारा ही बदला हुआ था |कमरे मे काफी सारे लड़के और लड़की जमा थे और किसी के कुछ भी नहीं पहना हुआ और सब के सब नंगे एक दुसरे से चिपके हुए थे और गोला बनाकर उसको घेरा हुआ था | अब मुझे वास्तव मे डर लगने लगा था | जब मै वहा पहुंची, तो सीमा खुश होकर बोली, आ जा बच्ची! तेरा हमारे गेंग मे स्वागत है और फिर मुझे अपने कपडे उतारने को बोला | मुझे डर लगने लगा था, तो मै वापस जाने लगी | दरवाजा बंद हो चुका था और चिल्लाने का कोई फायदा नहीं था |

वहा पर मेरी ही क्लास का एक लड़का सुमित नंगा होकर नीचे सर किये बैठा था | जब मैने कपडे नहीं उतारे, तो सीमा ने जबरदस्ती मेरे कपडे उतार दिये और मुझे पूरा नंगा कर दिया और मुझे सुमित के साथ बैठा दिया | हम दोनों के शरीर को चिपका दिया गया; मेरे चुचे सुमित की छाती मे धसे हुए थे और उसका सुकड़ा हुआ हँ छोटा सा लंड मेरी चूत पर लग रहा था |ये सब मेरे लिए नया था और मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था | सीमा को समझ आ गया था, कि हम दोनों ही चुतिया है और हमें कुछ नहीं मालूम | सीमा ने हम दोनों के मुखड़ो को देखा और बोला, सालो को पहले ब्लूफिल्म दिखानी पड़ेगी, उसके बाद ये हमें ब्लूफिल्म दिखायेंगे | फिर, हम दोनों एक कुर्सी पर बैठा दिया गया और सब लोगो हमें घेरकर खड़े हो गये | सीमा और उसका बोयफ्र्न्द हमारे सामने थे | सीमा का शरीर बहुत ही मस्त था और वो किसी नंगी हुसुन की मल्लिका लग रही थी और उसका बॉयफ्रंड भी एक मजबूत शरीर का मालिक था और उसके बड़े शरीर के सामने सीमा का रूप मस्त लगा रहा था | वो दोनों एकदूसरे के पास आगये और उन दोनों के होठ आपस मे जुड़ गये और वो बड़े ही कामुक तरीके से एक दुसरे को चूमें और चूसने लगे | उनको की साँसे गरम हो चुकी थी और भाई तेज चल रही थी और उनकी ओ…आआआआअ…….ऊऊछ्ह्ह … से पूरा कमरा गूंज रहा था |

सब लोग उनके इस कामुक अंदाज़ से गरम होने लगे थे और अब सब एक दुसरे से चिपकने लगे | सुमित के लंड ने भी खड़ा होना शुरू कर दिया | अब हमारे चारो ओर, लड़के और लड्किया आपस मे लगे हुए थे और पुरे कमरे मे संभोग का कामुक माहौल था | ये सब देखकर मेरी चूत मे भी खुजली होने लगी और मैने सुमित की जांघ को कसकर पकड़ लिया | सुमित ने मेरा हाथ खीचा और हम दोनों के होठ भी जुड़ गये और हम एक दुसरे को चूसने लगे | फिर, सुमित ने एक दो पोर्न्फिल्म देखी होगी, तो वो उसको याद करके मुझे चोदने लगा | उसने मुझे जमीन पर लिटा दिया और मेरे चूचो को चुसना शुरू कर दिया और मेरा शरीर भी मस्ती मे कसमसाने लगा और मेरे भूरे निप्पल मस्ती मे खड़े हो गये | उसने उनको चूस-चूसकर लाल कर दिया और फिर उसने दुसरे लडको को देखा, तो वो सब लड़कियों की चूत को चाट रहे थे और कुछ ६९ कर रहे थे वो घुमा और ६९ मे मेरी चूत को चाटने लगा और अपने लंड मेरे मुह के आगे कर दिया और मैने भी हिम्मत करके उसका लंड चुसना शुरू कर दिया |

हम दोनों की गांड मज़े मे हिल रही थी | तब तक सब जगह चुदाई का प्रोग्राम चालू हो गया था | सुमित मेरे ऊपर आ गया और उसने अपना लंड मेरी चूत के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया और मुझे मज़ने लगा और मैने अपनी गांड हिलाना शुरू कर दिया |इतने मे, सुमित ने पीछे से एक हाथ महसूस किया और सीमा के बॉयफ्रंड ने उसे पीछे हटा दिया और उसे सीमा के पास भेज दिया और बोला, नए और करारी सील खोलने का हक़ केवल मुझे है | सुमित बेचारे का मुह लटक गया, लेकिन सीमा उसके पास आयी और बोली बच्चे चिंता क्यों कर रहा है? अगर लड़कियों को पहली बार वो चोदता है, तो लडको के लंड को चोदने का हक़ सिर्फ मुझे है | फिर, सीमा का बॉयफ्रंड मेरे ऊपर आ गया और उसने अपना लंड मेरी चूत पर घिसना शुरू कर दिया और मुझे और भी मज़ा रहा था, क्योकि उसका लंड सुमित के लंड से भी बड़ा था | फिर, उसने एक ही झटके साथ, अपना लंड मेरी चूत मे घुसा दिया और मेरी चिक निकल गयी और वो बड़े मज़े से मेरी चूत को चोदने लगा | उसका लंड मेरी चूत मे पूरा समा गया था और हवा के लिए भी जगह नहीं बची थी |

मेरी दर्द के मारे मेरी जान निकल रही थी और मुझसे उसका लंड सहन नहीं हो रहा था | फिर भी, वो साला हरामी मेरी चूत चोदने को तैयार नहीं था | लेकिन, कुछ देर बाद मुझे मज़ा आने लगा और उसके लंड के मेरी चूत अन्दर रहते हुए, पता नहीं मै कितनी बाद झड गयी और मेरा वीर्य मेरी चूत के खून के साथ मिलकर मेरे सारे शरीर पर, उसके लंड पर और जमीन पर फैल गया |कुछ देर बाद, उसकी गांड भी तेज चलनी शुरू हो गयी और एक झटके के साथ, एक गरम पिचकारी मेरी चूत की दीवारे से टकराने लगी | मेरी चूत अन्दर से जल उठी और मेरे अपनी चूत को अपनी टांगो से बंद कर लिया | वो बंदा अपना लंड अभी तक निकाल नहीं पाया था और उसका लंड मेरी चूत मे, बिलकुल फस गया था | उसने मुझे एक कसकर थप्पड़ मारा और दोनों हाथो से जोर लगाकर, मेरी टाँगे खोल दी और अपना लंड निकाल लिया | उसके लंड का पूरा पानी रिस चुका था और मेरे ऊपर से उठ गया | दूसरी तरफ, सुमित को भी सीमा ने पूरा मज़ा दिया, लेकिन सीमा को मज़ा नहीं आया और उन्होंने सुमित को अपने गेंग मे आने से मना कर दिया | सीमा के बॉयफ्रंड ने मुझे पास कर दिया अब मै उनके गेंग की मेंबर बन गयी और अब एक दम बिंदास बन गयी |

Friday, 22 February 2013

कुछ और

किसी की मद्दत के बदले, कुछ और

रमेश अभी भी सोया हुआ | मैने फ़ोन करके कुछ खाने का सामान मंगवाया और चाय बनाने चली गयी | रमेश भी जाग चुका था और हम दोनों साथ चाय पीने लगी | शाम हो चुकी थी | रमेश ने जाने के लिए पूछा; तो, मैने उसे कल शाम तक रुकने के लिए बोला | मैने उसे पार्टी के बारे मे कुछ नहीं बताया | मै नहीं चाहती थी; वो घर चला जाए या भाग जाए | थोड़ी सी नानुकर के बाद वो मान गया और अपने घर फ़ोन कर दिया | मैने उस शाम को उसके बारे मै काफी कुछ जाना और उसकी पूरी पढाई के खर्चा खुद ले लिया | उसका दाखिला विदेश मे किसी बड़े कॉलेज मे हुआ था | फीस का इंतजाम तो उसकी छात्रवृति से हो गया और बच्ची हुई फीस के लिए उसे लोन मिल गया | लेकिन, उसके अलावा भी वहा जाना और रहना काफी मंहगा था; जो उसके परिवार की हैसियत के बाहर था | मैने सारा खर्चा पता लगवाया और उसका सारा इंतजाम कर दिया | उसके रहने के लिए वहा रूम और खाने-पीने का इंतजाम कर दिया गया | मैने ही एक घर वहा किराये पर ले लिया और रमेश को वहा रुकने के भेज दिया | रमेश का एक अकाउंट खुल गया और उसमे २ साल के लिए काफी पैसे जमा कर दिये गये |

रमेश मेरा अहसानमंद था | मैने, रमेश को बोला, मैने कोई अहसान नहीं किया | पहला तुम एक अच्छे इंसान हो और तुम्हारे लिए कुछ करने मुझे ख़ुशी होगी | दूसरा अब तुम मेरे बॉयफ्रेंड हो और तुम्हे मेरे साथ नाजायज संभंद रखने मे यहाँ परेशानी होगी | तो, अब तुम और हम ऐसी जगह मिलेंगे, जहा हम सबसे अनजान हो | उसको कोई तकलीफ नहीं थी |रात के खाने के बाद उसने मुझे पूरी रात खुश किया और हम दोनों नंगे लिपट कर सोये | सुबह मै जल्दी उठ चुकी थी और मेरे दोस्त आने शुरू हो गये थे | रमेश अभी सो ही रहा था | हम सब औरते मेरे बेडरूम मै जमा थी और सब मेरी क्सिमत से ईर्ष्या कर रही थी | सबको रमेश का शरीर पसंद आ गया था और उसका नंगा बदन सबके तन-बदन मे आग लगा रहा था | सबने अपने कपडे उतारने शुरू कर दिये और सब के सब नंगी खड़ी हुई थी | ये पहला मौका नहीं था; कि हम सब एक साथ नंगे हुए थे | फिर, हम सब अपने-अपने चूचो को दबा रहे थे और अपनी चुतो मे ऊँगली कर रहे थे |

हम सबके मुह से मस्ती मे कामुक आवाज़े निकल रही थी | आवाज़े सुनकर रमेश की आँखे खुल गयी और इतने सारी नंगी औरतो को अपने चलो तरफ देखकर वो भौचक्का रहा गया | उसने मुझे पूछा, ये सब क्या है? तो मैने कहा, आज तुम्हे हम सब को एक साथ झेलना पड़ेगा | फिर, दो सब उसके पास बैठ गयी और एक ने अपना चुचा उसके मुह मे घुसा दिया और एक औरत उसके लंड से खेलने लगी | उसने उसका लंड अपने मुह मे ले लिया था और उसको जोर-जोर से चूसने लगी | रमेश दर्द से चिला रहा था; लेकिन, सारी औरत पागलो की तरह उसे चूम रही थी |फिर, हमने उसको पलंग पे लिटा दिया और एक औरत ने अपनी चूत उसके मुह पर रख दी और रमेश उसको चूसने लगा | रमेश का लंड सीधा खड़ा था | दूसरी औरत ने अपनी चूत को खोलकर रमेश के लंड मे घुसा दिया और खुद को चोदने लगी | अब हम सब से नहीं रहा जा रहा था | हम सब ने दो-दो का ग्रुप बना लिया और एक दुसरे को चोदने लगे | कोई ऊँगली से, कोई नकली लंड से, कोई गाज़र, मूली और खीरे से |

जो औरत रमेश के साथ झड चुकी होती वो अलग हो जाती और दुरसी औरत रमेश पे चढ़ जाती | कुछ देर बाद रमेश के लंड ने खड़ा होना छोड़ दिया; आज शायद रमेश १०-१२ बार एक साथ झड चुका था | सारी औरते तृप्त हो चुकी थी और रमेश से काफी खुश थी | फिर, मै शर्त जित चुकी थी और शर्त का इनाम एक कार था, जो मेरे फार्महाउस मे आ गयी थे | मैने वो कार रमेश को दे दी और कहा, अब हम सब तुम्हारे लिए है | फिर, रमेश के बारे मे, मैने सबको बताया और सब ने रमेश को किसी भी तरह और कहीं भी मद्दत के कहा | रमेश मेरा बहुत ही अहसानमंद था और मेरी सारी दोस्त चले गये | जिस दिन रमेश को जाना था | उस दिन सारी दोस्तों ने उसे पार्टी दी और उसको छोड़ने एअरपोर्ट तक आये | मै खुद उसके साथ जा रही थी; ताकि, उसको किसी तरह की तकलीफ ना हो |
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Friday, 15 February 2013

हाँ कह के जिंदगी की सबसे बड़ी भूल




हाई दोस्तों, मेरा नाम शीतल हे और मैं २० साल की हूँ, मेरी बेहेन का नाम शालिनी हे और उसकी उम्र २१ हे | मेरे पापा अक्सर बाहर रहते हे काम के सिलसिले में और मेरी मोम एक स्कूल में अध्यापक हे, जिसके कारण हम दोनों बेहेन सारा दिन अकेले रहते हे | ये बात दो साल पुरानी हे जब में १० पास की थी और एक कॉलेज में दाखिला लिया था, मेरी बेहेन भी उसी कॉलेज में थी और वो १२ कर रही थी | उसका एक लड़के के साथ चक्कर चल रहा था जो दिखने में काफी अच्छा था और आमिर घर का था, उसका नाम राकेश था | मेरी चुचो का नाप ३२ हे और मेरी बेहेन का ३४ हे | हम दोनों काफी गोरे हे, कोई भी हमे देखता हे तो हमारे पीछे तो पड ही जाता हे |मेने अपनी बेहेन से एक दिन पूछा की तुम दोनों के बिच में अब तक क्या क्या हुआ हे, तो उसने कहा की जादा कुछ नही बस किस किये हे और उपर उपर से हुआ हे | मेरे कॉलेज जोइन करने के दो महीने बाद राकेश का जनम दिन था और उसने मेरी बेहेन को आने फार्म हाउस में बुलाया था और साथ में मुझे भी, मेरी बेहेन ने मुझसे पूछा और मेने हाँ कर दी, जो की हम दोनों ने अपने जिंदगी की सबसे बड़ी भूल की थी | दिन आया और राकेश हमे लेने के लिए आ गया अपनी कार लेके | हम दोनों कार में बैठ गए और फिर राकेश ने गाडी चालू कर दी और करीब दो घंटो के बाद हम उसके फार्म हाउस पे पहुच गए, उसका घर काफी बड़ा था और खेतों के बिच में था | मेने उसदिन लाला टॉप और काली जींस पहनी हुई थी और मेरी बेहेन ने नीली रंग की सूट पहनी हुई थी |हम दोनों घर के अंदर घुसे और राकेश ने फिर दरवाज़ा लगा दिया और फिर उसने कुण्डी भी लगा दी, हमने उससे पूछा की ये सब क्या हे तो वो बोला जानेमन अब देखते भी जाओ क्या क्या होता हे | कुछ पल के बाद अंदर से कुछ लडको की आवाज़ आई, हम दोनों उस समय काफी दर गए थे, ऐसा लग रहा था जेसे बहुत गड बड होने वाली हे | हम दोनों उस कमरे की तरफ बड़े जिस तरफ से आवाज़ आ रहित ही, और जब हम अंदर देखे तो हमारी जान निकल गयी, अंदर चार लड़के टीवी पे एमएमएस दख रहे थे, वो और किसी का नही मेरी बेहेन का, जिसमे उसने निचे काली रंग की जींस डाली थी और उपर कुछ नही था और राकेश उसको किस करते हुए उसके चुचो को दबा रहा था | ये दख के हमे बहुत रोना आया, पर हम उस समय कुछ कर भी नही सकते थे | राकेश ने मेरी बेहेन की वीडियो बनाई थी और उसे बहुत बड़ा धोका दिया था |राकेश बोला अगर तुम दोनों चाहते हो की ये वीडियो कॉलेज में न फेले तो वोही करो जो हम कहते हे, हम दोनों समज गए की अब आगे क्या होने वाला हे | हम दोनों उनके सामने बहुत रोये पर वो लोग कुछ सुनने के लिए तैयार ही नही थे | उन पांचो ने अपने कपडे उतार दिए और बिकुल नंगे हो गए, सबके लंड एक दम तने हुए थे, हम दोनों को वो दख के भी डर सा लग रहा था | तीन लड़के सोफे पे बैठ गए और दो कुर्सी लेके बैठ गए, और फिर राकेश बोला की अब बारी बारी से हम सबका लंड चूसो | हम दोनों ने कहा की हम नही करेंगे अगर तुम जान से मार भी दोगे तब भी नही करेंगे, फिर उसमे से एक लड़का बोला की हम जबर दस्ती करे उससे अच्छा होगा की तुम खुद करो | अब हमारे पास कोई चारा भी नही और फिर में एक लड़के के तरफ बड़ी और फिर घुटने के बल बैठ गयी और फिर धीरे धीरे उसके लंड की तरफ अपना मुह बड़ाई | उसने फिर मेरे गाल पे हाथ फेरा और फिर मेरे सर के पीछे हाथ रख के मेरे सर को अपने लंड की तरफ धकेल दी, और फिर मेरे मुह में उसका लंड घुस गया | धीरे धीरे करते करते उसका आधा लंड मेरे मुह में था और फिर उसने मेरे सर को पीछे की तरफ खीचा और फिरसे धकेल दिया | करीब चार पाँच बार ये करने के बाद मुझे समझ में आ गया की मुझे क्या करना हे, उधर दूसरे तरफ मेरी बेहेन राकेश के सामने बैठ चुकी थी और उसका लंड चूस रही थी, मुझे तो अंदर ही अंदर डर लग रहा था पर चूसना पड रहा था मुझे | हम दोनों ने बारी बारी सबका लंड चूस के उनका पानी निकाल दिया था, सबका लंड ८” के जितना तो था ही, बस आखिरी वाले का सबसे छोटा था, सबका चूसने के बाद जब में उसका चूसने लगी तो उसका लंड मुझे खिलोने जेसा लग रहा था, पर उसका भी चूस के निकाल दिया |अब सबका होने के बाद हमने उनके सामने हाथ जोड़ा की हमे छोड़ दो, पर वो लोग मान ही नही रहे थे | उनमे से एक लड़का बोला ” यार ये बताओ इन दोनों को सबसे पहले कोन चोदेगा ” सबने अपना अपना हाथ उपर कर लिया, क्युकी सबको पता था की हमारी चुत कुंवारी हे और अब तक हमारी चुत में ऊँगली नही गयी | अब सबके बिच एम् झगडा होने लगा की कोन हमे चोदेगा पहले, फिर उसमे से एक ने कहा की पर्ची उदा के दखते हे, वो लोगो ने फिर पर्ची बनाई और एक लड़के का मेरे उपर आया, और मेरी बेहेन के लिए वो लोग तैयार थे की मेरी बेहेन को राकेश ही पहले करेगा क्युकी वो उसके गल फ्रंड थी | हम दोनों की हालत एक दम खराब हो रही थी, मेरे लिए जिसका का नो. आया वो मुझे अपने पास बुलाया और फिर अपने गोद में बिठा लिया और मेरी पीठ पे हाथ फेरने लगा | राकेश ने मेरी बेहेन को बिच में खड़े होने को कहा और फिर उसे अपनी सलवार उतारने को कहा, मेरी बेहेन ने अपनी आँखे बंद कर ली और फिर सलवार उतारने लग गयी, सलवार खोलने के बाद उसने उसे निचे गिरा दिया उसका कुरता उसके जांघों तक आ रहे थे | उसके पैर एक दम चिकने और गोरे लग रहे थे, फिर उन्होंने उसे अपना कुरता उतारने के लिए भी कहा और फिर वो कुर्ते को उपर करके उसे उतरने लगी | दीदी ने सफ़ेद रंग की पेंटी पहनी हुई थी और दीदी की फूली हुई चुत पेंटी से साफ़ साफ़ नजर आ रही थी | पेंटी के उपर से दीदी के चुत के बाल भी दिख रहे थे, दीदी ने गुलाबी रंग की ब्रा पहनी हुई थी जिसके आर पार दीदी के चुचे दिख रहे थे | एक लड़के ने मुझे दीदी के पास खड़े होके कपडे उतरने को कहा और फिर मेने भी अपने कपड़े उतार दिए और अब में काली रंग की ब्रा और पेंटी में थी |अब दो लड़के आये हम दोनों के पीछे खड़े हो गए, एक ने दीदी की ब्रा उतार दी और एक ने मेरी पेंटी निचे कर दी, जिसने मेरी पेंटी निचे की वो मेरी गांड को चूमने लगा था | बाकी तीन सोफे पे बैठ के शो दख रहे थे, दोनों हमारे जिस्म के साथ खेल रहे थे और बाकी तीन दख रहे थे मजे में | कुछ देर बाद राकेश अपना लंड मेरी बेहेन के चुत में डाल दिया, दीदी की चीख सुन के मेरी जान निकल गयी, दीदी चिल्ला रही थी की अपना लंड निकाल दो मुझे बहुत दर्द हो रहा हे, आभी छोड़ दो फिर कभी कर लेना आभी निकाल दो थोडा तो रहम करो मुज्पे, पर किसी ने एक न सुनी उसकी और ठडे देर के बाद उस लड़के ने मुझे कुतिया बनाया और मेरी चुत में अपना लंड रगड़ने लगा, मुझे तो मज़ा आ रहा था पर मज़े के बिच में मेरे उपर पहाड टूट पड़ा, उसने जेसे ही लंड अंदर डाला मेरी आँखों से पानी आ गए और में चीख पड़ी, मुझे ऐसा लगा जेसे किसी ने मेरी चुत में चाकू डाल दिया हो, में रोने लग गयी और उसे बोली की मुझे छोड़ दो पर कोई नही सुन रहा था | दोनों लगे हुए थे चोदने में हम दोनों को | दोनों को हमारी चीख से कोई मतलब नही था, करीब दस मिनट बाद राकेश झड गया फिर दूसरा वाला भी झड गया |पुरे ज़मीं पे खून ही खून था और उनके लंड पे भी खून लगा हुआ था | हम दोनों एक दम मरे हुए की तरह ज़मीं पे पड़े थे | उन दोनों ने हमे उठा और फिर बाथरूम लेके गए और हमारे जिस्म को साफ़ किया और फिर बेडरूम में ला के लेटा दिया | मेने सबसे कहा की अब हमे जाने दो अब हम और चुदने के लायक नही हे बहुत दर्द हो रहा हे प्लिज्ज़ हम दोनों को जाने दो, जब हम ठीक हो जायेंगे तब खुद आ जायेंगे हम दोनों, बस अब के लिए जाने दो | बहुत रोने धोने के बाद वो लोग मान गए और फिर राकेश हमे गाडी में बिठा के ले के घर तक छोड़ दिया |

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