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Monday, 10 September 2012

मौसेरी बहन की चुदाई

मेरा नाम चरण है. मै एक छोटे से बस्ती का रहने वाला था. मेरे पिता प्राइमरी स्कूल के मास्टर थे. मेरी उम्र 15  वर्ष की थी जब मै और मेरे माता पिता अपने ननिहाल गया हुआ था. वहां मेरे मामा की शादी थी. वहां पर सभी सगे संबंधी जुटे थे. हम लोग शादी के पंद्रह दिन पहले ही पहुँच गए थे. मेरे पिता जी हम लोग को पहुंचा कर वापस अपनी ड्यूटी पर चले गए. और शादी से एक-दो दिन पहले आने की बात बोल गए. वहां पर दिल्ली से मेरे मौसा भी अपने बाल बच्चों के साथ आये थे. मेरी एक ही मौसी थी. उनको एक बेटा और एक बेटी थी. बेटा का नाम वीरू था और उसकी उम्र लगभग सोलह साल की थी. जबकी मौसी की बेटी का नाम नीरू था और उसकी उम्र लगभग पंद्रह साल की थी. हम तीनो में बहुत दोस्ती थी. मेरे मौसा भी अपने परिवार को पहुंचा कर वापस अपने घर चले गए. उनका ट्रांसपोर्ट का बिजनस था. पहले वो भी साधारण स्तर के थे लेकिन ट्रांसपोर्ट के बिजनस में कम समय में ही काफी दौलत कम ली थी उन्होंने. उनका परिवार काफी आधुनिक विचारधारा का हो गया था. हम लोग लगभग सात या आठ वर्षों के बाद एक दुसरे से मिले थे. 

मै , वीरू और नीरू देर रात तक गप्पें हांकते थे. नीरू पर जवानी छाती जा रही थी. उसके चूची समय से पहले ही विकसित हो चुके थे. मै और वीरू अक्सर खेतों में जा कर सेक्स की बातें करते थे. वीरू ने मुझे सिगरेट पीने सिखाया. वीरू काफी सारी ब्लू फिल्मे देख चूका था. और मै अभी तक इन सब से वंचित ही था. इसलिए वो सेक्स ज्ञान के मामले में गुरु था.

एक दिन जब हम दोनों खेतों की तरफ सिगरेट का सुट्टा मारने निकलने वाले थे तभी नीरू ने पीछे से आवाज लगाई - कहाँ जा रहे  हो तुम दोनों?

मैंने कहा - बस यूँ ही, खेतो की तरफ, ठंडी ठंडी हवा खाने.

नीरू - मै भी चलूंगी. 

मै कुछ सोचने लगा मगर वीरू ने कहा - चल 

अब वो भी हमारे साथ खेतों की तरफ चल दी. मै सोचने लगा ये कहाँ जा रही है हमारे साथ? अब तो हम दोनों भाइयों के बिछ सेक्स की बातें भी ना हो सकेंगी ना ही सिगरेट पी पाएंगे. लेकिन जब हम एक सुनसान जगह पार आये और एक तालाब के किनारे एक पेड़ के नीचे बैठ गए तो वीरू ने अपनी जेब से सिगरेट निकाली और एक मुझे दी. मै नीरू के सामने सिगरेट नहीं पीना चाहता था क्यों की मुझे डर था कि नीरू घर में सब को बता देगी.   लेकिन वीरू ने कहा - बिंदास हो के पी यार. ये कुछ नही कहेगी. 

लेकिन नीरू बोली - अच्छा...तो छुप छुप के सिगरेट पीते हो ? चलो घर में सब को बताउंगी.

मै तो डर गया. बोला - नहीं, नीरू  ऎसी बात नहीं है. बस यूँ ही देख रहा था कि कैसा लगता है. मैंने आज तक अपने घर में कभी नहीं पी है. यहाँ आ कर ही वीरू ने मुझे सिगरेट पीना सिखलाया है. 

नीरू ने जोर का ठहाका लगाया. बोली  - बुद्धू , इतना बड़ा हो गया और सिगरेट पीने में शर्माता है. अरे वीरू  कितना शर्मिला है ये. 

वीरू ने मुस्कुरा कर एक और सिगरेट निकाला और नीरू को देते हुए कहा - अभी बच्चा है ये.

मै चौंक गया. नीरू सिगरेट पीती है? 

नीरू ने सिगरेट को मुह से लगाया और जला कर एक गहरी कश ले कर ढेर सारा धुंआ ऊपर की तरफ निकालते हुए कहा - आह !! मन तरस रहा था  सिगरेट पीने के लिए. 

तब तक वीरू ने भी सिगरेट जला ली थी. वीरू ने कहा - अरे यार चरण, शहर में लडकियां भी किसी से कम नहीं. सिगरेट पीने में भी नहीं. वहां दिल्ली में हम दोनों रोज़ 2 - 3  सिगरेट एक साथ पीते हैं. एकदम बिंदास है नीरू. चल अब शर्माना छोड़. और सिगरेट पी. 

मैंने भी सिगरेट सुलगाया और आराम से पीने लगा.  हम तीनो एक साथ धुंआ उड़ाने लगे.

नीरू - अब मै भी रोज आउंगी तुम दोनों के साथ सिगरेट पीने. 

वीरू - हाँ, चली आना. 

सिगरेट पी कर हम तीनों वापस घर चले आये. अगले दिन भी हम तीनो वहीँ पर गए और सिगरेट पी. अभी भी मामा की शादी में 12  दिन बचे थे. 

अगले दिन सुबह सुबह मामा वीरू को ले कर शादी का ड्रेस लेने शहर चले गए. दिन भर की मार्केटिंग के बाद देर रात को लौटने का प्रोग्राम था. दोपहर में लगभग सभी सो रहे थे. मै और नीरू एक कमरे में बैठ कर गप्पें हांक रहे थे. 

अचानक नीरू बोली - चल ना खेत पर, सुट्टा मारते हैं. देह अकड़ रहा है.

मैंने कहा - लेकिन मेरे पास सिगरेट नहीं है.

नीरू - मेरे पास है न. तू चिंता क्यों करता है?

अब मेरा भी मन हो गया सुट्टा मारने का. हम दोनों ने नानी को कहा - नीरू और मै बाज़ार जा रहे हैं. नीरू को कुछ सामान लेना है. 

कह कर हम दोनों फिर अपने पुराने अड्डे पर आ गए. दोपहर के डेढ़ बज रहे थे. दूर दूर तक कोई आदमी नही दिख रहा था. हम दोनों बरगद के विशाल पेड़ के पीछे छिप कर बैठ गए और नीरू ने सिगरेट निकाली. हम दोनों ने सिगरेट पीना शुरू किया. 

नीरू ने एक टीशर्ट और स्कर्ट पहन रखा था. स्कर्ट उसकी घुटने से भी ऊपर था. जिस से उसकी गोरी गोरी टांगें झलक रही थी. आज वह कुछ ज्यादा ही अल्हड सी कर रही  थी. उसने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और मेरे से सट कर सिगरेट पीने लगी. धीरे धीरे मुझे अहसास हुआ कि वो अपनी चूची  मेरे सीने पर दबा रही है. पहले तो मै कुछ संभल कर बैठने की कोशिश करने लगा मगर वो लगातार मेरे सीने की तरफ झुकती जा रही थी. 

अचानक उसने कहा - देख, तू मुझे अपनी सिगरेट पिला. मै तुझे अपनी सिगरेट पिलाती हूँ. देखना कितना मज़ा आयेगा.  

मैंने कहा -  ठीक है. 

उसने मुझे अपना सिगरेट मेरे होठों पर लगा दिया. उसके सिगरेट के ऊपर उसके थूक का गीलापन था. लेकिन मैंने उसे अपने होठों से लगाया और कश लिया. फिर मैंने अपना सिगरेट उसके होठों पर लगाया और उसे कश लेने को कहा. उसने भी जोरदार कश लगाया. मेरा मन थोडा बढ़ गया. इस बार मैंने उसके होठों पर सिगरेट ही नहीं रखा बल्कि अपने उँगलियों से उसकी होठों को सहलाने भी लगा. उसे बुरा नहीं माना. मैं उसके होठों को छूने लगा. वो चुचाप मेरे कंधे पर रखे  हुए हाथ से मेरे गालों को  छूने लगी. हम दोनों चुपचाप एक दुसरे के होंठ और गाल सहला रहे थे. धीरे धीरे मेरा लंड खड़ा हो रहा था. सिगरेट ख़तम हो चुका था. मैंने एक हाथ से उसके चूची को हलके से दबाया. वो हलके के मुस्कुराने लगी. मैंने उसकी चूची को और थोड़ी जोर से दबाया वो कुछ नही बोली. अब मै आराम से उसकी दोनों चुचियों को दबाने लगा. धीरे धीरे मैंने अपने होठ उसके होठ पर ले गया. और उसे किस किया. उसने भी मेरे होठों को अपने होठो से लगाया और हम दोनों एक दुसरे के होठों को दस मिनट तक चूसते रहे. इस बीच मेरा हाथ उसकी चुचियों पर से हटा नहीं. 

अच्छी तरह उसके होठ चूसने के बाद मैंने उसे छोड़ा. उसके चुचियों पर से हाथ हटाया. उसके चूची के ऊपर के कपडे पर सिलवटें पड़ गयी थी. उसने अपने कपडे ठीक किये. 

मैंने कहा - नीरू अब हमें चलना चाहिए . 

नीरू - रुक न, थोड़ी देर के बाद एक और पियेंगे, तब चलना.

मैंने कहा - ठीक है.

नीरू ने कहा - मुझे पिशाब लगी है.   

मैंने कहा - कर ले बगल की झाड़ी में.

नीरू - मुझे झाडी में डर लगता है. तू भी चल.

मैंने कहा - मेरे सामने करेगी क्या ?

नीरू - नहीं. लेकिन तू मेरी बगल में रहना. पीछे से कोई सांप- बिच्छु आ गया तो?

मैंने - ठीक है. चल.

मै उसे ले कर निचे की तरफ झाडी के पीछे चला गया.

बोला - कर ले यहाँ. 

वो बोली - ठीक है. लेकिन तू मेरे पीछे देखते रहना. कोई सांप- बिच्छू ना आ जाये. 

कह कर मेरे तरफ पीठ कर के उसने अपने स्कर्ट के अन्दर हाथ डाला  और अपनी पेंटी को घुटनों के नीचे सरका ली. और स्कर्ट को ऊपर कर के पिशाब करने बैठ गयी. पीछे से उसकी गोरी गोरी गांड दिख रही थी. और उसकी पिशाब उसके चूत से होते  हुए उसके गांड की दरार में से हो कर नीचे  कर गिर रहे थे. उसकी पिशाब की आवाज़ काफी जोर जोर से आ रही थी. थोड़ी देर में उसकी पिशाब समाप्त हो गयी. वो खड़ी हो गयी. उसने अपनी पेंटी को ऊपर किया. और बोली - चलो अब. 

मैंने कहा - तू जा के बैठ. मै भी पिशाब कर के आता हूँ.

वो बोली - तो कर ले न अभी. 

मैंने कहा - तू जायेगी तब तो.

वो बोली - अरे, जब मै लड़की होकर तेरे सामने मूत सकती हूँ तो क्या तू लड़का हो के मेरे सामने नहीं मूत सकता?

मै बोला- ठीक है. 

मै हल्का सा मुड़ा और अपनी पैंट खोल कर कमर से नीचे कर दिया. फिर मैंने अपना अंडरवियर को ऊपर से नीचे कर अपने लंड को निकाला. नीरू के गांड को देख कर ये खड़ा हो गया था. मैंने अपने लंड के मुंह पर से चमड़ी को नीचे किया और जोर से पिशाब करना शरू किया. मेरा पिशाब लगभग तीन मीटर की दुरी पर गिर  रहा था. नीरू आँखे फाड़ मेरे लंड और पिशाब के धार को देख रही थी. वो अचानक मेरे सामने आ गयी और बोली - बाप रे बाप. तेरी पिशाब इतनी दूर गिर रही है. 

मैंने अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए कहा - देखती नहीं कितना बड़ा है मेरा लंड. ये लंड नहीं फायर ब्रिगेड का पम्प है. जिधर जिधर घुमाऊंगा उधर  उधर बारिश कर दूंगा.

नीरू हँसते हुए बोली - मै घुमाऊं तेरे पम्प को?

मैंने कहा - घुमा.

नीरू ने मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे दायें बाएं घुमाने लगी. मेरे पिशाब जहाँ तहां गिर रहा था. उसे बड़ी मस्ती आ रही थी. लेकिन मेरा लंड एकदम कड़क हो गया था..मेरा पिशाब ख़तम हो गया. लेकिन नीरू ने मेरे लंड को नहीं छोड़ा. वो मेरे लंड को सहलाने लगी.

बोली - तेरा लंड कितना बड़ा है. कभी किसी को चोदा है तुने?

मैंने - नहीं, कभी मौका नहीं मिला.   

मैंने कहा - तू भी अपनी चूत दिखा न नीरू.

नीरू ने अपनी पेंटी को नीचे सरका दिया और स्कर्ट ऊपर कर के अपना चूत का दर्शन कराने लगी. घने घने बालों वाली चूत एक दम मस्त थी. मैंने लपक  कर उसकी चूत में हाथ लगाया और सहलाते हुए कहा - हाय, क्या मस्त चूत है तेरी. मुठ मार दूँ तेरी? 

नीरू - मार दे. 

मै उसके चूत में उंगली डाल कर उसकी मुठ मारने लगा. वो आँखे बंद कर सिसकारी भरने लगी. 

मैंने कहा - पहले किसी से चुदवायी हो या नहीं?

नीरू - हाँ, कई बार. 

मैंने कहा - अरे वाह. तू तो एकदम एक्सपर्ट है. 

अचानक उसने मेरी पेंट और अंडरवियर खोल दिया. और अपनी पेंटी को पूरी तरह से खोल कर जमीन पर लेट  गयी. 

बोली - चरण , मेरे चूत में अपना लंड डाल कर मुझे चोद लो. आज तू भी एक्सपर्ट बन जा.  . 

मेरी भी गरमी का कोई ठिकाना नहीं था. मैंने अपना लंबा लंड उसके चूत के डाला और अन्दर की तरफ धकेला. पहले तो कुछ दिक्कत सी लगी. लेकिन मैंने जोर लगाया और पूरा लंड उसके चूत में डाल दिया. अचानक उसकी चीख निकल गयी. लेकिन मैंने उसकी चीख की परवाह नही की और उसकी चुदाई चालू कर दी. वो भी मेरे लंड से अपनी चूत की चुदाई के मज़े लेने लगी. थोड़ी देर में उसके चूत ने माल निकाल दिया. मेरे लंड ने भी उसके चूत में ही माल निकाल दिया. हम दोनों अब ठन्डे हो गए थे.

हम दोनों ने कपडे पहने और झाड़ियों में से निकल कर पेड़ के नीचे चले गए. वहां हम दोनों ने सिगरेट का सुट्टा मारा. लेकिन मेरा लंड फिर से खड़ा हो गया था. 

मैंने कहा - नीरू , चल न एक बार फिर से करते हैं. इस बार मज़े ले ले कर करेंगे. 

नीरू - चलो.

हम दोनों फिर से एक विशाल झाड़ियों के बीच चले गए. उस झाड़ियों के बीच मैंने कुछ झाड उखाड़े और हम दोनों के लेटने लायक जमीन को खाली कर के पूरी तरह नंगे हो गए. फिर हम दोनों ने एक दुसरे के अंगो को जी भर के चूमा चूसा. उसने मेरे लंड को चूसा. मैंने उसके चूत को चूसा. मैंने उसके दोनों चूची को  जी भर में मसला . 

फिर आधे घंटे के चूमने चूसने के बाद मैंने उसकी चुदाई चालू की. बीस मिनट तक उसकी दमदार चुदाई के बाद मेरा माल निकला.  फिर थोड़ी देर सुस्ताने के बाद हम दोनों ने कपडे पहने और वापस घर चले आये. 

अगले दिन वीरू, नीरू और मै उसी अड्डे पर आये. आज मन में बड़ी उदासी थी. सोच रहा था कि आज अगर वीरू साथ ना होता तो आज भी मज़े करता. नीरू भी यही सोच रही थी. 

वीरू ने कहा - क्या बात है आज तुम दोनों बड़े खामोश लग रहे हो?

मैंने कहा - नहीं तो. ऐसी कोई बात नहीं है.

वीरू - कल भी तुम दोनों यहाँ आये थे?

नीरू - हाँ. कल भी यहाँ आये थे हम दोनों. 

वीरू - तब तो बड़ी मस्ती की होगी  तुम दोनों ने? इसलिए आज सोच रहे होगे कि वीरू ना ही आता तो अच्छा था...क्यों सच कहा ना मैंने?

मैंने अकचका कर कहा - नहीं वीरू, ऎसी कोई बात नहीं. हम दोनों कल यहाँ आये जरुर थे. लेकिन सिर्फ सिगरेट पी कर जल्दी से घर वापस चले गए.

लेकिन नीरू ने कहा - हाँ वीरू, तुम सच कह रहे हो. कल मैंने इस से चुदवा लिया था.

मेरा तो मुंह खुला का खुला रहा गया. अब तो वीरू हम सब की बात सब को बता देगा. मेरे तो आखों से आंसूं निकल आये. मैंने लगभग रोते हुए कहा - वीरू भैया माफ़ कर दो मुझे. कल पता नहीं क्या हो गया था. अब ऎसी गलती कभी नही होगी.

वीरू - अरे पागल चुप हो  जा. इसने मुझसे पहले ही पूछ लिया था. मैंने इसे परमिशन दे दिया था. अरे यही दिन तो हैं मस्ती करने के. फिर ये जवानी लौट कर थोड़े ही ना आने वाली है? जा जा कर फिर से कर ले जो कल किया था. मै यहाँ हूँ. जा जा कर लुट मेरी बहन की जवानी. 

मुझे काटो तो खून नहीं वाली स्थति थी. लेकिन मै खुशी के मारे पागल हो गया. नीरू ने मेरा हाथ थामा और मुझे पकड़ कर वहीँ झाड़ियों के पीछे ले गयी. पुरे एक घंटे तक हम दोनों ने चुदाई कार्यक्रम किया. नीरू भी पस्त हो कर नंगी ही लेटी हुई थी. मैंने कपडे पहने. और नीरू को भी तैयार होने को कहा .उसने भी अपने कपडे पहने और हम दोनों वापस पेड़ के नीचे आ गए.

वीरू - क्यों , हो गयी मस्ती? 

हम दोनों ने कहा - हाँ. अब घर चल.

रात को एक बजे मेरी नींद खुल गयी. कमरे में घुप्प अँधेरा था.  नीरू को चोदने का मन कर रहा था. मै, नीरू और वीरू एक ही कमरे में सो रहे थे. मैंने कुछ आवाजें सुनी. ध्यान से सूना तो नीरू की कराहने की आवाज थी. थोडा और ध्यान से सुना तो किसी मर्द के गर्म गर्म सासें की आवाजें भी थी. मैंने अपने पास सोये वीरू को टटोला तो वो वहां नही था. मै तुरंत ही समझ गया. वो अपनी बहन की चुदाई कर रहा है. मेरा मन बाग़ बाग़ हो गया. मैंने अँधेरे में अपने लंड को निकाला और मसलने लगा. 

तभी दोनों की हलकी हलकी चीख सुनाई पड़ी. समझ में आ गया कि वीरू झड चूका है. थोड़ी देर में वो मेरे बिस्तर पर आ कर लेट गया. 

मैंने धीरे से बोला - यार, मेरा  लंड फिर से चूत खोज रहा है. वो भी नीरू की. क्या करूँ?

वीरू ने कहा - जा मार ले. मुझसे क्या पूछता है?

मै उठ कर नीरू के बिस्तर पर गया. उसे धीरे से जगाया. वो उठी. 

बोली - कौन है.?

मैंने धीरे से कहा - मै हूँ चरण.

नीरू - अरे चरण... आ जा ...तेरी ही बारे में सोच  रही थी. 

मैंने उसकी चूची दबाते हुए कहा - क्यों अभी अभी तो वीरू ने तेरी ली ना?

नीरू - अरे , उसे तो पिछले डेढ़ साल से ले रही हूँ. तेरी तो बात ही कुछ और है. 

मैंने - तो आ ना. फिर से दो राउंड हो जाये?

नीरू - हाँ ...आ जा मेरी जान. लेकिन मेरी ये चौकी काफी छोटी है. इस पर खेल ठीक से होगा नहीं. एक काम करो. वीरू को थोड़ी देर के लिए इस चौकी पर भेजो. हम दोनों उस कि चौकी पर चलते हैं.

मैंने कहा - ठीक है.

हम दोनों वीरू के चौकी के पास गए. नीरू ने धीरे से वीरू से कहा - वीरू, थोड़ी देर के लिए मेरी वाली चौकी पर चले जाओ ना. मुझे चरण के साथ थोड़ी मस्ती करनी है. 

वीरू - ठीक है बाबा. लेकिन देख, ज्यादा शोर शराबा मत करना. जो करना है आराम से करना.

फिर वो उठ कर छोटी वाली चौकी पर चला गया. और मैंने और नीरू ने उस घुप्प अँधेरे में दो घंटे तक मस्ती की. 

फिर अगले दिन झाडी में मैंने और वीरू ने मिल कर नीरू की चुदाई की. 

फिर ऐसा कार्यक्रम तब तक चलता रहा जब तक मामा की शादी के बाद हम सभी अपने अपने घर नहीं चले गए. फिर मै बाद में बहाना बना बना कर दिल्ली भी जाता था और नीरू के साथ खूब मस्ती किया.  


  

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