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Tuesday, 26 February 2013

छप्पर फाड़ कर-1


सुगंधा को वापस उसके छात्रावास छोड़ने के बाद मैं सभी देवों से इस बार बचा लेने की प्रार्थना करते हुए अपने कमरे पर लौटा (पढ़िए कहानी का पिछला भाग “छुपाए नहीं छुपते”)।

नेहा मेरे कमरे में फ़ोल्डिंग बेड पर पैर लटकाकर बैठी हुई थी और "कामायनी" का सस्वर पाठ कर रही थी। मेरी उससे कुछ कहने की हिम्मत नहीं पड़ी। जो कुछ उसने देखा था उसके बाद मेरी उससे निगाह मिलाने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैंने उससे पुस्तक ले ली और मनु और श्रद्धा की कहानी उसे सुनाने लगा। कहानी खत्म होने के बाद मैंने उसे कविता का अर्थ समझाना शुरू किया।

बीच में एक पंक्ति आई- “और एक फिर व्याकुल चुम्बन रक्त खौलता जिससे, शीतल प्राण धधक उठते हैं तृषा तृप्ति के मिष से।”

पढ़ने के बाद मैंने उसकी तरफ देखा। पंक्ति में चुम्बन शब्द आने से उसने थोड़ा बहुत अंदाजा तो लगा ही लिया था कि इसका अर्थ क्या होगा।

मैंने डरते डरते कहा, “इन पंक्तियों को छोड़ देते हैं।”

वो बोली, “क्यों।”

मैंने कहा, “इनका अर्थ अश्लील है।”

वो बोली, “और आप जो कर रहे थे वो अश्लील नहीं था क्या?”

मैंने अनजान बनते हुए पूछा, “मैं क्या कर रहा था?”

वो बोली, “मैं काफ़ी देर से खिड़की के पास खड़ी थी और आपको और सुगंधा को सेक्स करते देख रही थी। आपको शर्म नहीं आती ऐसी घटिया हरकत करते हुए और वो भी अपनी चचेरी बहन के साथ।”

मैंने शर्म से सर झुका लिया और धीमी आवाज़ में बोला, “मुझे माफ़ कर दो नेहा मैं बहक गया था। आज के बाद कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। प्लीज मुझे माफ़ कर दो।”

उसने कहा, “कब से ये सब कर रहे हैं आप दोनों।”

मैंने कहा, “बस ये दूसरी बार है और इसके बाद ऐसा कभी नहीं होगा। प्लीज किसी से कुछ मत कहना इसके बारे में, वरना मैं और सुगंधा दोनों बर्बाद हो जाएँगें।”

उसने कहा, “चलिए इस बार तो मैं किसी से कुछ नहीं कहूँगी मगर अब कभी अगर आप सुगंधा को यहाँ लाए तो मैं पापा को सब-कुछ बता दूँगी।”

मैंने कहा, “थैंक्यू बेबी, आज के बाद मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा।”

मेरी जान में जान आई। मैंने कामदेव को धन्यवाद दिया। एक बड़ा संकट टल गया था।

मैंने वो दो पंक्तियाँ छोड़ दीं और नेहा को आगे का अर्थ समझाने लगा। एक घंटे बाद वो चली गई।

अगले रविवार को नेहा का जन्मदिन था। उसका मुँह बंद रहे इसलिए बेहतर था कि मैं उसे कोई अच्छा सा तोहफा दे देता। मैं उसके लिए अच्छी सी घड़ी खरीद कर लया।

अपने जन्मदिन के अगले ही दिन वो विद्यालय से वापस आते ही स्कर्ट और शर्ट पहने हुए ही छत पर मेरे कमरे में आई और बोली, “थैंक्यू, भैय्या।”

मैं बोला, “यू आर वेलकम, बेबी।”

वो सचमुच बहुत खुश थी। मैंने उसको अठारह साल की हो जाने पर दुबारा बधाई दी और कहा कि अब तुम वोट दे सकती हो और अपनी मर्जी से जिससे चाहो शादी भी कर सकती हो।

वो मुस्कुराने लगी। फिर मैंने उससे पूछा कि विद्यालय में आज क्या पढ़ाया गया। वो बताने लगी। थोड़ी देर हम दोनों में इधर उधर की बातें होती रहीं फिर वो वापस चली गई।

अगले रविवार वो मेरे पास आई तो उसने जींस और टॉप पहना हुआ था। मैंने उसको इससे पहले भी बाजार वगैरह में जींस और टॉप में देखा था लेकिन दूर दूर से और हमेशा एक बच्ची की नज़र से। आज तो वो कयामत लग रही थी। बिल्कुल कसी हुई टॉप में उसके बड़े बड़े उरोज बाहर निकल आने को आतुर लग रहे थे। इसके सामने सुगंधा के उरोज तो कुछ भी नहीं हैं, मैंने सोचा।

दो सप्ताह से मैं हस्तमैथुन करके काम चला रहा था। लेकिन योनि का रस जिसने एक बार छक कर पी लिया उसका मन हस्तमैथुन से कहाँ भरता है।वो मेरे सामने से गुजरकर फ़ोल्डिंग बेड पर बैठने के लिए गई तो मैंने पीछे से उसके नितम्बों का जायजा लिया।

"हे कामदेव ! इतने बड़े नितम्ब।"

"कहाँ छुपाकर रक्खे थे इस लड़की ने?"

सचमुच भगवान जब देता है तो छप्पर फाड़कर देता है।

"हे कामदेव, अपने पुष्पबाण वापस तरकश में डाल लो, वरना मैं न जाने क्या कर बैठूँ।"

पर कामदेव जब एक बार पुष्पबाण चलाना शुरू कर देते हैं तो फिर जान निकाले बिना कहाँ मानते हैं। न जाने कहाँ से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई कि मैंने उससे पूछा, “अपने ब्वायफ्रेंड से मिलकर आ रही हो क्या।”

वो बोली, “नहीं अपने ब्वॉय फ़्रेंड से मिलने जा रही हूँ मगर आपको इससे क्या? आप तो मुझे हिंदी पढ़ाइए और अपनी चचेरी बहन से सेक्स कीजिए।”

मेरा मुँह लटक गया। मुझे उससे ऐसे कटाक्ष की आशा नहीं थी।

उसने मेरी तरफ देखा और मेरा लटका हुआ मुँह देखकर बोली, “मैं तो मजाक कर रही थी। आप तो बुरा मान गए।”

मैंने कहा, “मैंने तुमसे बताया था न कि मुझसे गलती हो गई। इसके लिए मैं शर्मिन्दा हूँ। फिर भी तुम ऐसी बात कह रही हो। उस बात को भूल जाओ और आगे से कभी ऐसा मजाक मत करना नहीं तो मैं कहीं और कमरा ले लूँगा।”

अचानक उसे न जाने क्या हुआ कि वो आकर मुझसे लिपट गई और रोने लगी।

मैं भौंचक्का रह गया।

वो मुझसे लिपटकर रो रही थी, उसके मांसल उरोज मेरे सीने से दबे हुए थे और वो रोए जा रही थी।

कुछ देर मैंने उसे रोने दिया, फिर मैंने उससे पूछा, “क्या हुआ बेबी?”

वो बोली, “आई लव यू, भैय्या। आई लव यू। आप नहीं जानते आप मुझे कितने अच्छे लगते हैं। मैं कब से आप से प्यार करती हूँ इसलिए उस दिन जब मैंने आपको और सुगंधा को सेक्स करते हुए देखा तो मैं पागल हो गई। यदि आप मुझे न रोकते तो मैं सचमुच पापा को बता देती और जब मुझे यह पता चला कि वो आपकी चचेरी बहन है तो मुझे आपसे नफ़रत होने लगी। पर जब आपने बताया कि आप अपने किए पर शर्मिंदा हैं और आप फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे तो मैंने दिल से आपको माफ़ कर दिया। अब मैं कभी उस घटना का जिक्र नहीं करूँगी। प्लीज मुझे माफ़ कर दीजिए और अब कभी यह घर छोड़कर जाने की बात मत कीजिएगा।”

मैं जानता था कि यह उम्र होती ही ऐसी है जिसमें लड़की आकर्षण और प्यार में अंतर नहीं कर पाती। मेरे जैसे स्मार्ट लड़के पर उसका आकर्षित होना कोई बड़ी बात नहीं थी। लेकिन वो आकर्षण को प्यार समझ बैठी थी। ये कमसिन और नादान उम्र की लड़कियाँ भी न, दूध के दाँत भी अभी ठीक से नहीं टूटे कि दुनिया की सबसे जटिल भावना “प्रेम” को समझ पाने और प्यार होने का दावा करने लगती हैं।

मैंने कहा, “भैय्या भी कहती हो और आई लव यू भी कहती हो। मैं एक बार गलती कर चुका हूँ दुबारा नहीं करना चाहता।”

अब उसका रोना बंद हुआ और वो बोली, “आई लव यू, सर !”

मैं बोला, “अब ठीक है, लाओ किताब दो और उधर बैठो।”

वो बाथरूम से अपना चेहरा धोकर आई। मैंने उसे ऊपर से नीचे तक निहारा। मेरी निगाह उसके मांसल उरोजों पर जाकर रुकी। उसने मेरी निगाह का पीछा किया तो शर्म से उसके गाल लाल हो गए।

मैंने अपनी बाहें फैला दीं। वो सर झुकाकर धीरे धीरे आई और मेरी बाहों में सिमट गई। मैंने कसकर उसे खुद से भींच लिया। उसके बड़े बड़े उभार मेरे सीने में चुभकर अजीब सी गुदगुदी कर रहे थे। मैंने उसके बालों में उँगलियाँ फेरनी शुरू कीं। फिर उसकी पीठ पर हाथ फिराना शुरू किया।

वो मुझसे लिपटी हुई थी। मुझे पता था कि एक बार सचमुच का सेक्स देखने के बाद अब तो इसका मन करता होगा कि इसके साथ भी वही सब कुछ हो।

मैं डरते डरते अपना हाथ उसके नितम्बों पर ले गया।

"हे कामदेव इसके नितम्ब तो सुगंधा के नितम्बों से तिगुने हैं।"

उसने कोई विरोध नहीं किया। मैं उसके नितम्बों को धीरे धीरे सहलाने लगा। फिर मैंने उसके नितम्ब को पकड़कर उसे और करीब खींच लिया। उसकी जाँघें मेरी जाँघों से सट गईं। उसका गदराया हुआ बदन बाहों में भरने का आनंद ही अलग था।

उससे चिपके चिपके ही मैं उसे बेड के पास ले गया और उसे बेड पर लिटाने लगा। वो मुझसे अलग होने को तैयार ही नहीं थी। मैंने उसके गालों पर फिर होंठों पर चुम्बन लिया। उसके गले पर चुम्बनों की बरसात कर दी। उसकी टीशर्ट के खुले हुए हिस्से पर चुम्बन लिये। उसके बाद मैंने उससे कहा, “लेट जाओ नेहा। मैं तुम्हारे साथ जो कुछ करना चाहता हूँ वो खड़े खड़े नहीं हो सकता।”

वो मुझसे अलग हुई। मैंने उसे बेड पर लिटा दिया। वो आधी बेड पर थी लेकिन उसके पैर बेड के नीचे लटके हुए थे। मैं उसके बगल बैठ गया। उसकी साँसें पहले की अपेक्षा तेज हो गई थीं। मैंने अपना एक हाथ उसके माँसल उभार पर रखा।

वो सिहर उठी।

मैं धीरे धीरे उसके उभारों को सहलाने लगा।

पहली बार संभोग के लिए तैयार लड़कियों का कोई भरोसा नहीं होता पता नहीं कौन सी बात पर नाराज हो जाएँ और आगे बढ़ने से इंकार कर दें। इसका मूल कारण उनका डर और संभोग के संबंध में उनकी अज्ञानता होती है। इसलिए पहली बार जब भी किसी लड़की के साथ शारीरिक संबंध बनाएँ धीरे धीरे और बिना किसी जबर्दस्ती के बनाएँ। लड़की अगर इंकार करे तो आगे न बढ़ें वरना जबरदस्ती आप इधर उधर हाथ तो लगा लेंगे मगर साथ ही भविष्य में संभोग की सारी संभावनाएँ खत्म कर लेंगे।

मैंने अपना दूसरा हाथ उसके दूसरे उरोज पर रखा। उसकी साँसें और तेज हो गईं।

मैंने उसके उरोजों को सहलाना शुरू किया। उरोज क्या थे दो रुई के गोले थे। सुगंधा के उरोज तो इसके सामने कुछ भी नहीं थे। मेरा लिंग पजामें में तंबू बना रहा था। मैंने उरोजों को जोर जोर से मसलना शुरू किया तो उसके मुँह से कराह निकली।

अब मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था, मैंने उसकी टीशर्ट ऊपर उठाई, उसने मेरे हाथ पकड़ लिए और बोली, “कोई आ जाएगा।”

आगे क्या हुआ? जानने के लिए इंतजार कीजिए कहानी के अगले भाग का !

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